कविता

फितरत

बेमानी है रिश्ते सभी

अहंकार में रची-बसी

स्वार्थ की बगिया है हरी भरी

प्रेम की निशा कहीं नहीं !

कहने को अपने सभी

लेकिन अपनापन कहीं नहीं !

हैसियत पैसों से तौली

जाती है रिश्ते सभी

प्यार वफा की कोई बात नहीं !

झूठी तारीफ पर मरते हैं सभी

सच्ची बात नहीं लगती भली !

सिक्कों की चकाचौंध में

सच्चे रिश्ते दिखते कहीं नहीं !

अपने पराए की जमघट में

है अपना कोई नहीं !

चाहे कर लें कितने यकीं

हम इंसानों की फितरत बदलतीं नहीं!

— विभा कुमारी “नीरजा”

*विभा कुमारी 'नीरजा'

शिक्षा-हिन्दी में एम ए रुचि-पेन्टिग एवम् पाक-कला वतर्मान निवास-#४७६सेक्टर १५a नोएडा U.P