राजनीति

खालिस्तान की मांग

भारत की आन्तरिक समस्या में खालिस्तान की मांग ने सरकार को एक बार फिर से परेशान कर दिया है। जिससे भारतीय जन-मानस की स्मृति में 80 के दशक का उग्रवाद उभर आया है। उस समय की भयावह स्थिति ने देश को बहुत नुकशान पहुँचाया और देश ने बहुत कुछ खोया। खालिस्तान एक बार फिर से भारत के सबसे ज्यादा समृद्धशाली व वीरो की भूमि पंजाब को उग्रवाद की आग में धकेल रहा है। कुछ शरारती तत्व देश विरोधी ताकतों के साथ मिलकर भारत एवं अन्य देशों में खालिस्तान की मांग को लेकर धरने-प्रदर्शन व तोड़-फोड़ कर रहे हैं। भारतीय दूतावासयों व पूजा स्थलों को भी निशाना बनाया जा रहा है। जो कि बहुत ही निदंनीय एवं जघन्य अपराध है। सरकार को हर संभव कठोरता के साथ उनका दमन करना चाहिए। खालिस्तान की समस्या कोई नई समस्या नहीं है यह ब्रिटिश भारत से लेकर आज तक बनी हुई है। इतिहास के पन्नों पर दृष्टिपात करने से ज्ञात होता है कि सन् 31 दिसम्बर 1929 को लौहार के कांग्रेस अधिवेशन में पूर्व प्रधानमंत्री स्व0 जवाहर लाल नेहरू ने पूर्ण स्वराज्य की मांग की सभी ने इस प्रस्ताव को पास कर दिया। उसी समय तत्कालीन नेता तारा सिंह ने खालिस्तान की मांग रखी। उसके बाद यह मांग आन्दोलन का रूप लेने लगी। सबसे पहले खालिस्तान की लिखित मांग 1940 में प्रकाशित “खालिस्तान“ नामक पुस्तकें में की गई थी। खालिस्तान का मतलब ’खालसे की सरजमीन’ है। इसके समर्थकों व सिख अल-अलगावादियों ने अलग सिख राष्ट्र की मांग करनी शुरू कर दी। सिख अलगाववादियों ने जो खालिस्तान रूपी राष्ट्र की मृगमरिचिका की कल्पना की उसमें भारत के पंजाब व राजस्थान का कुछ हिस्सा व पाकिस्तान के पंजाब का कुछ क्षेत्र शामिल किया है। इन तीनों को मिलाकर सिख अलगाववादी खालिस्तान नामक राष्ट्र बनाने का सपना देख रहे है। खालिस्तान का राष्ट्रवाक्य ‘अकाल सहाए’ अर्थात्’ ईश्वर की कृपा से’ तथा राष्ट्रगान ‘देह शिवा बर मोहि इहै’ अर्थात् ‘हे सर्व शक्तिमान मुझे यह वरदान दो’ है। खालिस्तान के समर्थक इसका उद्देश्य बताते है कि जैसे मुस्लिमों के लिए अलग देश पाकिस्तान बना है। उसी प्रकार सिखों के लिए भी अलग खालिस्तान होना चाहिए।
उसी प्रकार की भावनात्मक भावनाओं को भड़का कर कुछ सिख अलगाववादियों ने इस आन्दोलन को चलाया है। तारा सिंह द्वारा भड़कायी इस चिंगारी ने 80 के दशक आते-आते विकराल रूप धारण कर लिया। खालिस्तान उग्रवाद 1984 में अपने चरम पर था। पंजाब में खालिस्तान के समर्थकों ने ताण्डव मचा रक्खा था। उस समय खालिस्तानी नेता भिंडरावाले ने जनता को भड़काया और आन्दोलन को उग्र रूप दे दिया। उसने इस आन्दोलन को धार्मिक रूप देने का प्रयास किया। उसने सिखों के प्रमुख तीर्थ स्थल स्वर्ण मन्दिर पर कब्जा कर लिया। स्वर्ण मन्दिर से अलगाववादियों को बाहर निकालने के लिए 1 जून 1984 से 10 जून 1984 तक सेना द्वारा ऑपरेशन ब्लूस्टार चलाया गया। इसमें भिंडरा वाले सहित अलगाववादी मार गिराये गये। उसके बाद भी खालिस्तान की मांग करने वालो के खिलाफ ऑपरेशन बुडरोज-जून-सितम्बर 1984, ऑपरेशन शुद्धिकरण-1984 तथा ऑपरेशन ब्लैक थंडर-प्ए 30 अप्रैल 1984 एवं ऑपरेशन ब्लैक थंडर-प्प्, 9 मई 1988 को चलाया गया। भारत की सरकार ने पंजाब में अलगाववाद की आग को बुझाने का प्रयास तो किया परन्तु कुछ स्वार्थी तत्वों ने उस अलगाववाद की आग को जलाये रखा। पंजाब की इस आग को बुझाने में भारत को बहुत कुछ खोना पड़ा है जिसकी भरपाई करना असंभव है। ऑपरेशन ब्लूस्टार के बदले में सिख कट्टरपंथियों ने 31 अक्टूबर 1984 की सुबह श्रीमती इन्दिरा गांधी प्रधानमंत्री की हत्या कर दी। 23 जून 1985 को एयर इंडिया के विमान को बम से उड़ा दिया जिसमें 329 लोग मारे गये। 10 अगस्त 1986 को 13वें पूर्व थल सेनाध्यक्ष जनरल ए0एस0 वैध की हत्या कर दी गयी, इसके साथ ही 31 अगस्त 1995 को तत्कालीन सीएम बेअंत सिंह की भी हत्या कर दी गयी। खालिस्तान के उग्रवादियों ने भारत एवं पंजाब को बहुत कष्ट दिये हैं जिन्हें अब समाप्त करने का समय आ गया है। खुद को वारिस पंजाब के संगठन का प्रमुख बताने वाले अमृतपाल ने एक बार फिर से खालिस्तान उग्रवाद को बढ़ावा दिया है। उसका स्पष्ट कहना है कि “मैं खुद को भारतीय नहीं मानता, मेरे पास जो पासपोर्ट है ये मुझे भारतीय नहीं बनाता, ये यात्रा करने के लिए बस एक कागज भर है।“ इस प्रकार अलगाववाद की खुलेआम बात करने वालों को सरेआम शूली पर चढ़ा देना चाहिए। देश की एकता और अखण्डता के साथ किसी भी प्रकार का खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है। आज विश्व के कई देशों में खालिस्तान समर्थकों ने भारतीय दूतावास व हिन्दू पूजास्थलों को निशाना बनाया है। कई स्थानों पर तो भारतीय तिरंगे का भी अपमान किया गया है। सरकार को सख्ती के साथ इन कुछ मुट्ठीभर खालिस्तानियों से निपटना चाहिए। साथ ही सरकार को कनाड़ा, लंदन, आस्टेªलिया, अमेरिका में अभिव्यक्ति के के नाम पर हो रहे खालिस्तान के प्रदर्शनों पर रोक लगाने के लिए दबाव बनाना चाहिए। आज भारत विश्व की बढ़ती अर्थव्यवस्था है। इस प्रकार के आन्दोलनों से भारत की छवि खराब होती है। जो भी संगठन व देश इस उग्रवाद को बढ़ावा एवं आर्थिक मदद दे रहे हैै, उनके खिलाफ भी कार्यवाही सरकार को करनी चाहिए। पंजाब सीमावर्ती राज्य होने के कारण बहुत ही संवेदनशील है। इसलिए राज्य सरकार एवं केन्द्र सरकार को मिलकर सटीक, ठोस एवं कारगर रणनीति बनाकर कठोर कार्यवाही करनी चाहिए। सख्त कार्यवाही एवं विदेशों के साथ कूटनीतिक वार्ता ही इस समस्या का समाधान है। सेवा एवं देशभक्त की पर्यायवाची सिख कौम को खालिस्तान के उग्रवादियों के बहकावे में आने की जरूरत नहीं है। भारत में खालिस्तान बनाने का सपना देखने वालो को यह समझ लेना चाहिए कि यह सपना ही उनकी मौत का निमंत्रण है। पंजाब भारत का अभिन्न अंग था है और हमेशा रहेगा।

— सोमेन्द्र सिंह

सोमेन्द्र सिंह

सोमेन्द्र सिंह " रिसर्च स्काॅलर " दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली शास्त्री सदन ग्राम नित्यानन्दपुर, पोस्ट शाहजहांपुर, जिला मेरठ (उ.प्र.) मो : 9410816724 ईमेल : [email protected]