भिया के तेजस्वी पंखे
भूपेंद्र भारतीय द्वारा लिखित ” भिया के तेजस्वी पंखे” व्यंग्य संग्रह वैसे तो धीरे-धीरे देश के कोने कोने में पहुंच रहे हैं । भूपेंद्र भारतीय जी का भले यह पहला व्यंग्य संकलन है । पर वह व्यंग्य की दुनिया मे किसी परिचय के मोहताज नहीं है। क्योंकि हर दिन किसी न किसी राष्ट्रीय समाचार पत्र में आपके व्यंग्य प्रकाशित होते ही रहते हैं । और हम उन्हें गाहे-बगाहे पढ़ते रहते हैं।
‘ भिया के तेजस्वी पंखे’ नाम पढ़ कर ही यह ज्ञात हो जाता है कि किसी मध्यप्रदेश के मालवा निवासी ने लिखा है। यह पुस्तक पढ़ने पर ज्ञात होगा कि जब एक अधिवक्ता व्यंग्य लिखता है तो बहुत ही तीखा मीठा काम्बिनेशन हो जाता है। वह अपने तरकश के सारे तीक्ष्ण व्यंग्यात्मक बाणो को व्यंग्य शब्दों में परिवर्तित करके आम जनता की समस्या को उजागर करते हुए अपनी बात कहता जाता है। कभी तीखे रूप में तो कभी मीठे रूप में कहता है।
भिया के तेजस्वी पंखे में एक दो नहीं पूरे 61 व्यंग्य के ब्लेड नूमा पंखे लगे हैं। जो पूरी तरह पैनें व धारदार है।और पूरी रफ्तार में चलते है । वैसे तो देखा जाए तो भूपेंद्र जी के तेजस्वी पंखे अपनी उच्च गुणवत्ता के चलते ,चलने के मामले में पहले ही पूरी रफ्तार पकड़ चुके हैं । पाठक इनकी रंजक व रोचक हवाओं का आनंद ले रहे हैं। पर यदि अभी तक ये पंखे आप तक नही पहुचे है तो आप इस पंखे तक पहुंचने की कोशिश कर सकते हैं । भूपेंद्र भारतीय हमारे समय के व्यंग्य के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उन्हें समसामयिक विषयों , यात्रा संस्मरणों, कविता आदि पर गहरी पकड़ है। इस कारण उनके अधिकांश व्यंग्य समसामयिकी हैं। और कुछ व्यंग रचनाओं में वह अपने साथ सहयात्री के रूप में पढ़ने वालों को भी बिठा लेते हैं । वह भूत और भविष्य से ज्यादा वर्तमान के लेखन को महत्व देते हैं।
उनके इस व्यंग्य संकलन की शुरुआत पत्राचार और चौंकाने वाले नतीजों से शुरू होकर लोकतंत्र की बारात में खान-पान का ध्यान रखें , हम नहीं मानने वाले ,गधे हंस रहे हैं, साईं इतना दीजिए जा में कुटुम्ब बच जाए, व्यस्त लोगों की दुनिया ,अजर अमर होने की फिराक में, सब्जी के ठेले पर लोकतंत्र, राजनीति में चाणक्य वाद, भिया के तेजस्वी पंखे, बापू की बकरी फिर खो गई आदि ऐसे ही अनेक रोचक, तीखे तेवर वाले व मारक बाणों से सजा हुआ यह व्यंग्य संकलन है। जिसकी भूमिका वरिष्ठ साहित्यकार बृजेश कानूनगो जी ने लिखा है जो व्यंग के सशक्त हस्ताक्षर और जानकार हैं। साथ ही पुस्तक का आवरण पृष्ठ प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट डॉ देवेन्द्र शर्मा ने बनाया है।
पुस्तक को लेखक ने अपने सहज, सरल और पठनीय भाषा से व्यंग्य रचनाओं में चमत्कार उत्पन्न करने का प्रयास किया है तथा लोक भाषा एवं लोक मुहावरों का भी भरपूर प्रयोग किया गया है। पहला व्यंग्य संग्रह होने के उपरांत भी कमोबेश लेखक अपने प्रयास में सफल हुए है । संग्रह की रचनाएं आपको पसंद आएगी ऐसा मुझे विश्वास है।
पुस्तक का नाम –भिया के तेजस्वी पंखे (व्यंग्य संग्रह) लेखक –भूपेंद्र भारतीय
मूल्य —₹200
प्रकाशन —सर्व भाषा प्रकाशन दिल्ली
पुस्तक समीक्षक —– रेखा शाह आरबी