सावन
सावन महीना लगे अति पावन
शंकर के मन्दिर सुन्दर सजाएं।
नेह का मेह बरसता यूं मानों
भोले को जल इन्द्रदेव चढाएं।
शीश पे शोभित चन्द्रमा मोहक
निराला है तन पे भस्म रमाएं।
घटाएं चहुंदिश करे गर्जनाएं
महादेव का जैकारा लगाएं।
कावड़ियें बम भोले गाते हुए
अभिषेक करने को कावड़ लाएं।
है आशुतोष ये भोले भंडारी
महाकाल की महिमा क्या सुनाएं।
करते है कल्याण शिवजी हमेशा
चलों उनके चरणों में शीश झुकाएं।
भावना सच्ची हो दिल में अगर तो
कंकर भी शंकर स्वयं बन जाए।
— नीतू शर्मा मधुजा