बालकहानी – साहसी बच्चे
अजय और संजय दोनों भाई एक ही स्कूल में पढ़ते थे। अजय 10 वीं और संजय 8 वीं कक्षा में थे। दोनों भाई न केवल पढ़ाई-लिखाई और खेलकूद में ही आगे रहते थे, बल्कि निडर और साहसी भी थे।
उनके पिताजी एक प्राइवेट फैक्ट्री में काम करते थे। उन्हें अपने काम के सिलसिले में अक्सर शहर से बाहर जाना पड़ता था।
एक दिन की बात है। अजय और संजय रोज की तरह स्कूल गए हुए थे। उनकी माँ घर में अकेली थी। तभी डोरबेल बजी। ‘पोस्टमैन’ बाहर से बाहर से आवाज आयी।
‘‘आती हूँ, जरा रूको।’’ माँ ने कहा और दरवाजा खोल दिया।
दरवाजा खोलते ही दो हट्टे-कट्टे युवक जबरन घर के भीतर घुस आए और उन्होंने दरवाजा अंदर से बंद कर दिया।
माँ कुछ समझ पातीं, इससे पहले एक युवक ने लपक कर उनका मुँह बंद कर दिया और कहा- ‘‘खबरदार, मुँह से एक भी शब्द निकला तो बंदुक की छहों गोली तुम्हारे सिर में होंगी।’’
एक चोर ने अजय की माँ को कुर्सी से बाँध दिया और उनसे घर के कीमती सामान और रुपयों के बारे में पूछने लगा। दूसरा चोर घर के कीमती सामानों को इकट्ठा करने लगा।
अभी यह सब चल रहा था कि डोरबेल बजी। चोर चौंक पड़े और सोचने लगे कि दरवाजा खोलें या नही। इधर अजय और संजय को दरवाजा खुलने में देरी होने से आश्चर्य हुआ।
अजय ने दरवाजे के दो पट्टे के बीच की छेद से अंदर झाँका तो चौंक पड़ा। अंदर माँ को कुर्सी से बंधा देख वह समझ गया कि जरूर कुछ गड़बड़ है। अजय का दिमाग तेजी से काम करने लगा। उसने संजय से कहा कि वह छिपकर चोरों पर निगरानी रखे। उसने स्वयं बिना देर किए पास के टेलीफोन बूथ से पोलिस स्टेशन को सूचित कर दिया।
दिनदहाड़े चोरी की बात सुनकर पुलिस वाले भी तुरंत बताए हुए पते पर पहुँच गए। तब तक अजय घर के पिछवाड़े का दरवाजा बाहर से बंद कर चुका था।
अब घर से बाहर निकलने का एक ही दरवाजा था। पुलिस वाले दरवाजे की दोनों ओर चुपचाप खड़े होकर चोरों के बाहर निकलने की प्रतीक्षा करने लगे।
उधर दोनों चोर सारे कीमती सामान और नगदी दो अटैचियों में बंद कर जाने के लिए जैसे ही दरवाजे से बाहर निकले पुलिस वालों ने उन्हें आसानी से पकड़ लिया।
सभी ने अजय और संजय की खूब प्रशंसा की, जिनकी सूझबूझ और हिम्मत से दोनों चोर रंगे हाथों पकड़े गए।
— डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा