गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

आज ग़म से उबर गये होते
जो चले उस डगर गये होते

वो उठा कर नज़र चले जाते
प्यार के हो असर गये होते

देखते ही रहे हमीं उनको
काश ! वो तो ठहर गये होते

खूब ढाया क़हर पलीं यादें
साथ उनके उभर गये होते

जो दिखें वो हमें सुकूं मिलता
प्यार में हम सँवर गये होते

आज चिलमन उठा कहा उसने
आज दिल में उतर गये होते

प्यार की राह में थके जो तुम
बाँहों में तुम पसर गये होते