लघुकथा

साहित्य के आयाम

“सौम्या, तुम इतनी सादी साड़ी और साधारण मेकअप में साहित्यिक कार्यक्रम में जाओगी? तुम्हारे कहानी संग्रह का आज विमोचन भी है और तुम ऐसे ही जाओगी?”      दीदी ने सौम्या से कहा।

          “हां, पर इस साड़ी में क्या बुराई है? साहित्यिक कार्यक्रमों में तो सादगी से ही जाना चाहिए न दीदी?”         सौम्या ने मुस्कुराते हुए कहा।

       “नहीं सौम्या, तुम समझती नहीं। आजकल तो लोग साहित्यिक कार्यक्रमों में शादी समारोह की तरह सज-धज कर जाते हैं। देखती नही , माधुरी को। वह कवि सम्मेलनों में स्टाइलिश बनकर जाती है।वहां वह लटके-झटके दिखाती है तो लोग वाह! वाह! करते हैं और वह सीमा, अपने लटके-झटके के बल पर अपनी बेकार सी कविताओं को बड़े प्रकाशन से छपवा भी ली। प्रकाशक उससे बहुत प्रभावित हैं। जानती हो क्यों? क्योंकि वह अपनी खूबसूरती का प्रदर्शन करती है।”          दीदी ने सौम्या को समझाया।

       “ओह! दीदी, पर मेरी कहानियां तो देश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में छपती है। मेरी कई कहानियां पुरस्कृत भी है। लोग मुझे नहीं ,मेरी कहानियों को जानते हैं फिर चाहे मैं जो भी पहनूँ क्या फर्क पड़ता है।”        सौम्या ने लापरवाही पूर्वक कहा।

        “फर्क पड़ता है क्योंकि आजकल साहित्यिक कार्यक्रम फाइव स्टार होटलों में हो रहा है। वैसे ही पहनावा और खान-पान होता है।अब साहित्य के आयाम बदल रहे हैं। साहित्य में दिखावा हावी होता जा रहा है। समझी?”            दीदी ने कहा।           यह सुनकर सौम्या साड़ी बदलने चली गई।

          —          डॉ. शैल चन्द्रा

*डॉ. शैल चन्द्रा

सम्प्रति प्राचार्य, शासकीय उच्च माध्यमिक शाला, टांगापानी, तहसील-नगरी, छत्तीसगढ़ रावण भाठा, नगरी जिला- धमतरी छत्तीसगढ़ मो नम्बर-9977834645 email- [email protected]