कविता

सैलाब 

आँखों में अब अक्सर आया करते हैं सैलाब

मचलते भले जज्बात हों, पर रहते हैं चुपचाप

जुबाँ भले हों चुपचाप, पर आँखें हैं बोलती

जिंदगी का है तकाजा, जहाँ बेबसी हैं बसती

रंग उतरे रिश्तों में, पूछने का मन नहीं करता

फर्ज निभाकर टूटा, जुड़ने का मन नहीं करता

इस उम्र तक आते आते समझ में आयी बात

बोलने से ज्यादा भला है, खामोश रह जाना

क्यों, किसके लिए रखूं अतीत का हिसाब 

भविष्य की न चिंता, खुलकर जी रहा आज

आने वाले कल से अब मुझे लगता नहीं डर

उम्मीदों को रख दिया है, कोने की ताक पर

सांसों को हरकत और सुकून पाने की चाहत

बोझ कांधे से उतारने, लिया वक्त से इजाजत

जवाब देने से सवालों में जाता था उलझ

लगा हूँ अब सुनने,सवाल जाते हैं सुलझ

हिसाब रखो तो पूछते हैं , किया क्या तूने

कहा – कुछ खास नहीं, बस हो गया खाक

उसने  मुस्कुराकर मुझसे मेरी उम्र है पूछा

हंसकर जवाब दिया, जो बचा वही ज्यादा

— श्याम सुन्दर मोदी

श्याम सुन्दर मोदी

शिक्षा - विज्ञान स्नातक, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से प्रबंधक के पद से अवकाश प्राप्त, जन्म तिथि - 03•05•1957, जन्म स्थल - मसनोडीह (कोडरमा जिला, झारखंड) वर्तमान निवास - गृह संख्या 509, शकुंत विहार, सुरेश नगर, हजारीबाग (झारखंड), दूरभाष संपर्क - 7739128243, 9431798905 कई लेख एवं कविताएँ बैंक की आंतरिक पत्रिकाओं एवं अन्य पत्रिकाओं में प्रकाशित। अपने आसपास जो यथार्थ दिखा, उसे ही भाव रुप में लेखनी से उतारने की कोशिश किया। एक उपन्यास 'कलंकिनी' छपने हेतु तैयार