सैलाब
आँखों में अब अक्सर आया करते हैं सैलाब
मचलते भले जज्बात हों, पर रहते हैं चुपचाप
जुबाँ भले हों चुपचाप, पर आँखें हैं बोलती
जिंदगी का है तकाजा, जहाँ बेबसी हैं बसती
रंग उतरे रिश्तों में, पूछने का मन नहीं करता
फर्ज निभाकर टूटा, जुड़ने का मन नहीं करता
इस उम्र तक आते आते समझ में आयी बात
बोलने से ज्यादा भला है, खामोश रह जाना
क्यों, किसके लिए रखूं अतीत का हिसाब
भविष्य की न चिंता, खुलकर जी रहा आज
आने वाले कल से अब मुझे लगता नहीं डर
उम्मीदों को रख दिया है, कोने की ताक पर
सांसों को हरकत और सुकून पाने की चाहत
बोझ कांधे से उतारने, लिया वक्त से इजाजत
जवाब देने से सवालों में जाता था उलझ
लगा हूँ अब सुनने,सवाल जाते हैं सुलझ
हिसाब रखो तो पूछते हैं , किया क्या तूने
कहा – कुछ खास नहीं, बस हो गया खाक
उसने मुस्कुराकर मुझसे मेरी उम्र है पूछा
हंसकर जवाब दिया, जो बचा वही ज्यादा
— श्याम सुन्दर मोदी