उपन्यास सम्राट ‘मुंशी प्रेमचंद’
सृष्टि के आरंभ के साथ प्रकृति ने विभिन्न स्वरूपों से संसार की अनेक वस्तुएं, जीव- जंतु प्रकृति प्रदत्त खाद्यान्न प्रदान किए। मनुष्य ने समय उपरांत कृषि संसाधनों में इसका प्रयोग किया, परंतु विभिन्न युगों में अनेक शासकों ने वागडोर संभाली। मनुष्य के जीवन स्तर की कार्यप्रणाली में समय के साथ-साथ बदलाव होता गया। जब ब्रिटिश शासन व्यवस्था के पर्दापण के साथ अंग्रेजों ने कूटनीति के द्वारा भारतीयों पर अनेक प्रकार से पक्षपात, भ्रष्टाचार, सूदखोरी आदि अत्याचार शुरू किए । उस समय भारतीय समाज की स्थिति संतोषजनक नहीं थी, क्योंकि 85% जनसंख्या कृषक जीवन से जुड़ी थी। उनका मुख्य व्यवसाय खेती, पशुपालन आदि रहा। भारतीय जीवन सरल, सहज होने के कारण अंग्रेजों ने कूटनीति के द्वारा भारतीय किसान को लगान, महाजन प्रथा, घूसखोरी आदि के माध्यम से प्रताड़ित करना आरंभ कर दिया तथा साथ ही विभिन्न युगों में साहित्य लेखन परंपरा की भी प्रमुख भूमिका रही। उस समय किसान वर्ग और अधिक प्रताड़ना का शिकार होता गया। प्रेमचंद ने ग्रामीण जीवन की विभिन्न विभीषिका को बहुत समीप से देखा कि किस प्रकार महाजन और नवाब किसानों का शोषण कर लगान लेकर विभिन्न प्रकार की यातनाऐं देते थे। इन सभी पहलुओं को अपने उपन्यासों में गंभीरता पूर्वक चित्रित किया है। समाज के उपेक्षित, तिरस्कृत कृषकों के जीवन के ज्वलंत उदाहरण उनके उपन्यासों में चित्रित हैं । गोदान उपन्यास प्रेमचंद का सर्वश्रेष्ठ उपन्यास है। लेखक ने ग्रामीण जीवन की समस्याओं के साथ नागरिक जीवन की समस्याओं में न केवल उच्च वर्ग और मजदूर वर्ग की समस्याओं को जीवंत रूप में प्रस्तुत किया है बल्कि समाज की सच्चाई को समाज के समक्ष प्रस्तुत किया है। गोदान का प्रमुख पात्र होरी जीवन की परिस्थितियों में इतना जकड़ा है कि 40 वर्ष की उम्र में वृद्ध दिखाई देता है। उन्होंने उपन्यास में गांव के साथ किसान की मनोदशा तथा विभीषिका का इतना सटीक चित्रण किया है कि आज के परिवेश में किसी लेखक का इस प्रकार से वर्णन करना असंभव है। गोदान के पात्र होरी-धनिया (पति-पत्नी) के जीवन की अंतर व्यथा को, निर्मला उपन्यास में बेमेल विवाह के द्वारा अवहेलना का शिकार तथा गवन में जालपा का गहनों के प्रति लगाव से टूटते जीवन मूल्यों का वास्तविक चित्रण किया है। प्रेमचंद ने हमेशा ही दलित एवं शोषित समाज के प्रति लेखनी चलाई। समाज में दलित वर्ग के प्रति पूंजीपति वर्ग का दृष्टिकोण सदैव उपेक्षित रहा। लेखक पूंजीपति वर्ग से घृणा करते रहे उनका मुख्य उद्देश्य दलितों के प्रति आवाज उठाना था । होरी धनिया पति-पत्नी के जीवन की अंतर व्यथा को आधुनिक दृष्टिकोण से व्यक्त करने का प्रयत्न किया हैं।
प्रेमचंद ने अपनी साहित्य साधना को आत्मबल के द्वारा गद्य साहित्य की अनेक विधाओं में पिरोया है। लेखक ने जमींदारी पद्धति द्वारा शोषण के अंतर्गत जमींदार व महाजनी शोषण का भी चित्रण किया। उस समय ब्रिटिश शासन में हाकिम हुक्काम अमले भी प्रत्यक्ष रूप से किसानों का शोषण करते रहे। भारतीय कृषकों को गांव के पंच और बिरादरी का भय निरन्तर होता रहा। प्रेमचंद ने संपत्ति, चाहे पूंजीवादी की हो या सामंतवादी की, सभी प्रकार की संपत्ति को विपत्ति को मूल कारण बताया। गांव में अशिक्षा के कारण किसानों में अंधविश्वास, छुआछूत, जाति- पाति, विधवा जीवन की विडंबना, पारिवारिक विवाद आदि बुराइयों का जीवंत चित्रण कर उस यथार्थ को उजागर किया है। जिसका समाज पर गहरा प्रभाव पड़ा। प्रेमचंद का प्रमुख उद्देश्य सभी बुराइयों के प्रति आक्रोश व्यक्त कर समाज की इस विसंगति को दूर करना था। वास्तव में प्रेमचंद युग दृष्टा, युग प्रेरक के रूप में हिंदी साहित्य जगत के प्रणेता थे। उन्हें उपन्यास सम्राट के नाम से जाना जाता है। प्रेमचंद भारतीय कृषक के जीवन में आज भी जीवित हैं।
प्रेमचंद युगीन समाज के जीवन की समस्याओं और उनके समाधान को प्रस्तुत करना चाहते थे। उन्होंने यथार्थ के माध्यम से आदर्शवाद को प्रस्तुत किया है, उन्होंने केवल मनोरंजन के लिए ही साहित्य नहीं लिखा, बल्कि ऐसा साहित्य जिससे जनसाधारण का कल्याण हो। वह जीवन के आदर्शों की स्थापना में सदा जागरूक रहे। उन्होंने प्रत्येक उपन्यास, कहानियों में मानवीय दुर्बलताओं को चित्रित किया है परंतु अंत में उनका ह्रदय परिवर्तित हुआ और वह मानव संस्कृति के उच्च आदर्शों की ओर उन्मुख हुए। जिस प्रकार काव्य में मानव के सत्य का जो उद्देश्य महाकवि तुलसीदास की दृष्टि में रहा, वही दृष्टिकोण प्रेमचंद के उपन्यासों में रहा। दासता से पीड़ित राष्ट्र के प्रति मानव में अपने राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिए जो भाव उद्बेलित रहा था। उसको सार्थक प्रेमचंद ने किया है। आज के लेखक के लिए अच्छा साहित्य लिखना कल्पना पर्याय बन कर रह गया है।
— डॉ. पूर्णिमा अग्रवाल