सुई धागा
सुई धागा महोबत का पिरोके लाया था,
बरसों की यादों का मौसम ये धागा था।
आज शाखों से भी एक पत्ता निकल गया,
मेरे वजूद की टहनी पे ठहरा ये धागा था।
वक्त की आब-ओ-ताब में उलझा रहा मैं,
हम, की जिन्हें तारे बोने मिन्नत ये धागा था।
नज्में लिखते लिखते लफ़्ज़ोंकी खींचातानी,
बंजर कागज़ के सीने पे गज़ल ये धागा था।
याद तेरी सी रहा हूं मगर सूई में न धागा था
हर तरह परखा प्यार का बंधन ये धागा था।
~-बिजल जगड