दोहे
बतलाते खुद को सभी, दुनिया में नाचीज।
लेकिन बिन मतलब नहीं, होते लोग अजीज।।
पहनो चाहे कण्ठ में, कितने ही ताबीज।
लेकिन अनुभव के बिना, आती नहीं तमीज।।
हद से ज्यादा चतुर तो, होता नहीं उदार।
उनसे मत करना कभी, जीवन में व्यापार।।
आज समझ में आ गयी, दुनिया की औकात।
मतलब के संसार में, है मतलब की बात।।
भोलेपन में मत कभी, करना कुछ उपकार।
कृतज्ञता को मानता, नहीं आज संसार।।
जो करते हद से अधिक, चिकनीचुपड़ी बात।
अक्सर ऐसे लोग ही, पहुँचाते आघात।।
घरघर जाकर खोजते, जो हैं नित्य शिकार।
उन लोगों की मित्रता, मत करना स्वीकार।।
— डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’