मुक्तक/दोहा

मुक्तक

(1)

मिला संग तुम्हारा हम निखरने लगे,

जब से देखा तुम्हे हम संवरने लगे।

जर्रे जर्रे से खुशबू आने लगी,

हवाओं में पराग अब बिखरने लगे।।

(2)

नाम तेरा लेते ही हिचकियाँ बंद हो गई।

याद तुझको करते ही सिसकियां बंद हो गई।।

जबसे मुँह फेरा है तुमने मेरा दिल बैचेन हैं।

लगता है जैसे उसकी धकधकियाँ मंद हो गई।।

(3)

नसीबो से हमको मिले जो हो तुम,

लगता है जनमो से बिछुड़े थे हम।

अब मिल कर फिर ना बिछुड़ जाइए,

प्यार नज़रों से ही जतलाइए।।

— डॉ शिवदत्त शर्मा शिव

डॉ. शिवदत्त शर्मा

शिक्षा B.A.M.S. आयुर्वेद स्नातक 1972 जन्म 1950 50 वर्षो से साहित्य सेवारत गीत,ग़ज़ल,गद्य-पद्य लेखन अनेको देश-विदेश के पत्र-पत्रिकाओं में नियमित प्रकाशन मंचीय कवि अनेको संस्थाओं द्वारा सम्मानित। आकशवाणी एवं दूरदर्शन से अनेको कार्यक्रम प्रसारित। स्वयम के फेसबुक पेज़ और यू-ट्यूब चेनल साप्ताहिक ऑन लाइन कर्यक्रम की अनवरत प्रस्तुति। अनेको नवोदित साहित्यकारों का मार्गदर्शन एवम ऑनलाइन काव्य पाठ का अवसर प्रदान कर उनमें आत्मविश्वास भरना। पता:-- शशि क्लीनिक C-240 मुरलीपुरा स्कीम जयपुर राजस्थान 302039 मोबाइल 9829640001