लेख

वो बेशर्म कौन लोग थे ? उनको इतना अदम्यसाहस कहां से मिला

ब्रम्हांड के सारे ग्रह व्यवस्थित होकर निरन्तर आगे की ओर अग्रसर हैं भारतदेश को बचाने के लिये सारे ग्रह अपनी- अपनी कक्षा में घृर्णन कर रहे हैं, इन ग्रहों से अब कोई भी घुमक्कड़ उल्कापिंड टकराने का साहस नही कर पा रहा है, क्या मजाल की हमारी आकाशगंगा में मौजूद सैकड़ो घुमक्कड़ उल्काओं में से कोई उल्का किसी भी ग्रह से टकराने का साहस कर सके और सब कुछ अस्त व्यस्त करने की योजना बना सके और अव्यावस्था पैदा करने की मंसूबा में कामयाब हो सके क्योंकि हमारी धरती पर संजय जैसे लोग अभी भी मौजूद हैं वह अपनी दिव्य दृष्टि से समय- समय पर आंख बन्द करके सभी ग्रहों का नजारा देखा करते हैं कि सारे ग्रह अपनी- अपनी जगह पर बहुत ही अच्छा प्रर्दशन कर रहें हैं और अपनी धूरी पर पूरी मस्ती में नाच रहें हैं! सूर्यनारायण भी अपने प्रकाश से सभी ग्रहों को ओत प्रोत कर रहें हैं, कभी- कभी किसी ग्रह के पास संजय को कोई गुब्बार नजर आता भी है तो वह यही सोंच लेते हैं कि ग्रह बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा है इसलिये धूल का गुब्बार है जो कुछ दिनों में खत्म हो जायेगा। निरन्तर चल रही तेज और गर्म हवाओं के बावजूद यदि धूल छटने की बजाय और धुन्ध बढ़ती ही गयी तो हमारे वैज्ञानिकों ने एक दम से चुप्पी साध ली, और सब कुछ उनके हाल पर छोंड़ दिया, ग्रह को अपने हाल पर छोड़ने के अलावा और कुछ किया भी तो नही जा सकता है अभी तक ऐसा कोई अविष्कार नही किया गया जिसका सहारा लेकर हम प्राकृतिक आपदाओं से निपट सके, ऐसा नही कि हमारे वैज्ञानिकों को तूफान, ज्वालामुखी, प्रलय, उथल पुथल होने  से पहले आहट न मिलती हो लेकिन वह कर भी क्या सकते हैं इसलिसे वह एकदम शान्त होकर प्रलयंकारी सुनामी का कारवां गुजरने का इंतजार करते हैं फिर गुबार देखने के लिये तटीय क्षेत्रों में पहुंच जाते हैं 25 दिसम्बर 2004 को मौसम विभाग को अरब सागर में मौसम खराब होने की जानकारी हो चुकी थी उन्हे यह भी मालूम हो चुका था कि कोई तूफान अरब से उठ कर धीरे- धीरे हमारी ओर बढ़ता चला आ रहा है मौसम विभाग भी इस प्रकार के सैकड़ों तूफान देख चुका था थोड़ी देर के लिये हमारे वैज्ञानिकों को लगा कि यहां आते- आते सब शान्त हो जायेगा। हमारे तंत्र और हमारे यत्रों ने मौसम की खराबी तो देख ली थी और चलने वाली हवाओं को भी जान लिया था लेकिन हवाओं की तीव्रता से अंजान रहे और शान्त रहे फिर 26 दिसम्बर 2004 को जो हुआ उसको पूरे देश ने देखा जिसमें दो लाख से ज्यादा लोगों ने अपनी जान गवां दी और जो बचे वह सभी घर से बेघर हो चुके थे 19 साल बाद भी वहां के लोग अभी भी दर्द से उबर नही पाये हैं। जिस क्षण मौसम विभाग को तूफान के बारे में पता चल गया था उसी क्षण यदि गंभीरता से उस पर अमल किया जाता तो देश को इतनी बड़ी त्रासदी का सामना न करना पड़ता और इतना वीभत्स नजारा भी देखने को न मिलता।

हमें शर्मनाक स्थितियों का सामना वहीं करना पड़ता है जहां पर हम घटना के शुरूवाती दौर पर ध्यान नही देते हैं फिर निरन्तर प्रकाश संश्लेषण की क्रिया होने से हमारे पौधे बृक्ष बनने लगते हैं और उन बृक्षों पर कई प्रकार के परिदों का आशियाना भी बनने लगता है एक दिन ऐसा आ जाता है कि पेंड़ की हर डाल पर किसी न किसी प्रकार का हिंसक पक्षी बैठा नजर आने लगता है और हिंसा फैलाने में वह अपना समर्थन देने लगता है फिर उस पेंड़ के आस पास से गुजरने वाले छोटे जीवों को वह अपना निशाना बनाने लगता है कुछ दिनों तक छोटे मोटे जीव हिंसक पंक्षियों की यातना को सहन करते हैं लेकिन जब उनकी सहनशीलता जबाब दे देती है तो सभी एक दिन इकठ्ठा होकर शर्मनाक पेंड़ की हर डाल से हिंसक पंक्षियों को भगाने का प्रयास करते हैं लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है पेंड़ की डाल से गिद्धों को हटाने के लिये आयी भीड़ अब गिद्धों से परास्त होंने लगी और नोका झोंकी में गिद्धों की भीड़ ने थलचर वाले जीवों को पकड़ कर और अपनी चोंच व नुकीले पंजों से पूरे बदन पर खूनी लाल रंग की लकीरे खींचने लगे गिद्ध पूरी साहस और समर्थन के साथ शिकार में पाये गये जीव के बदन को नोंचने में जुटते थे इस दौरान कृतिम खाल से ढका बदन पूरी तरह से बहार आ गया इस अमानवीय नजारे को देख कर अन्य जीव कुछ कांव- कांव कर रहे थे कुछ मूकदर्शक बने गिद्धों का नंगा नाच देख रहे थे जिसमें से कुछ कबूतर ऐसे भी निकले जो इस घटना के संदेश की चिट्ठी पूरे देश में बांट दी जिसके कारण पूरे देश को शर्मशार होना पड़ा और सभी देशवासी इस हृदयविदारक घटना की आलोचना करने लगे और सोचने लगे कि शर्मनाक पौधा किसने पनपने दिया ? किसने इस पौधे में पानी और उर्वरक डाली ? जो आज बृक्ष बन गया और अपनी हर डाल पर गिद्धों की शरणास्थली बना डाली।

आखिर क्यों 140 करोड़ भारतीयों को शर्मशार होना पड़ा ? वो बेशर्म कौन लोग थे ? जिनकी वजह से देश को शर्मशार होने पड़ा ? आखिर उनको इतना अदम्यसाहस कहां से मिला कि सरेराह भीड़ की खुली आंखों के सामने दिन दहाडे दो महिलाओं को निर्वस्त्र करके उनके संवेदनशील अंगों पर हाथ फेरते हुये वह क्या दिखा रहे थे! अपने साहस की कामयाबी या किसी की नाकामी ? पूरी भीड़ और स्थानीय प्रशासन मूंक दर्शक बना हैवानों की दरिन्दगी देखती रही और दो महिलाएं अपनी आत्म रक्षा के लिये सभी से गुहार लगाती रहीं लेकिन किसी ने साहस नही किया कि उन दोनों को हैवानों के चंगुल से छुडाया जा सके और उनके साथ पूरे देश की आबरू को बचाया जा सके, आज हमारा देश हमारा समाज  पूरी तरह से शिक्षित एवं जागरूक हो चुका है देश में किसी प्रकार की कोई व्यथा किसी के पास कहीं भी नजर नही आ रही है तो इतनी बड़ी संवेदनहीनता कैसे हो गयी ? इससे पहले भी देश में महिलाओं के साथ कई गंभीर घटनाएं घटित हो चुकी हैं लेकिन मणिपुर के कांगपोकपी जनपद के बी फोनेम गांव के निवासियों को वहां के एक समुदाय के लोगों द्वारा दूसरे समुदाय के लोगों को गांव से भाग जाने की चेतावनी दी गयी थी जिसमें से अधिकांश लोग गांव पलायन भी कर चुके थे परन्तु जिन दो महिलाओं के साथ घटना घटित हुयी उनके परिवार गांव से भागने में असमर्थ रहे जिसके कारण दूसरे समुदाय के क्रूर और हिंसक लोगों ने दो महिलाओं को पकड़ कर उनको नंगा करके और अपने सैकड़ों समर्थकों के साथ उनके जननांगों से भद्दे से भद्दा मजाक किया गया और सूनसान जगह पर ले जाकर दो महिलाओं के साथ दरिन्दगी की यह सब क्या अचानक हुआ है ? क्या इस विवाद की जनकारी किसी को नही थी ? क्या इसी प्रकार जातीय हिंसा बढ़ती रहेगी ? आखिर मणिपुर इतना तबाह क्यों हो रहा है ? क्या इस घटना से यही दिखाने की कोशिश की गयी है कि हमारे देश की महिलाएं सुरक्षित नही हैं ? क्या कथनी और करनी का पर्दाफास किया गया है ?  क्या मणिपुर के आदिवासियों को शिक्षा की हवा नही लगी ? समाज के अंतिम पायदान से तालुल्लक रखने वाली एक महिला को सर्वोच्च स्थान पर पदस्थ करके पूरे देश को क्या दिखाया गया है और आगे भी क्या – क्या दिखाने का प्रयास किया जा रहा है, जाति के ऊँचे ऊँचे महल में रहकर हमारा स्तर इतना नीचा हो चुका है कि हम कुछ भी देख पाने में असमर्थ हैं और देश की सबसे बडी कोर्ट सुप्रीमकोर्ट को मणिपुर की घटना को संज्ञान लेना पड़ रहा है

राजकुमार तिवारी (राज)

बाराबंकी

राज कुमार तिवारी 'राज'

हिंदी से स्नातक एवं शिक्षा शास्त्र से परास्नातक , कविता एवं लेख लिखने का शौख, लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र से लेकर कई पत्रिकाओं में स्थान प्राप्त कर तथा दूरदर्शन केंद्र लखनऊ से प्रकाशित पुस्तक दृष्टि सृष्टि में स्थान प्राप्त किया और अमर उजाला काव्य में भी सैकड़ों रचनाये पब्लिश की गयीं वर्तामन समय में जय विजय मासिक पत्रिका में सक्रियता के साथ साथ पंचायतीराज विभाग में कंप्यूटर आपरेटर के पदीय दायित्वों का निर्वहन किया जा रहा है निवास जनपद बाराबंकी उत्तर प्रदेश पिन २२५४१३ संपर्क सूत्र - 9984172782