मेरा आँगन
खो गया मेरा
वो अँगना
न जाने कहाँ
जहाँ हम बैठ मिल पीते थे
सुबह शाम चाय
गर्मियों में लगाकर पंखा
छिड़क के पानी
बिसती थी सोने को चारपाइयाँ
बजती थी ढोलक
तीज त्योहारों पर
सजता था मंडप
बहन बेटियों के ब्याहों पर
हाय मेरा वो आँगन
नज़र लग गई ज़माने की
सिमट कर आ गया
ड्राइंग रूम में
जहाँ न चारपाई बिसती है
न कोई मंडप सजता है