गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

देश हुआ श्मशान कि हम खुश हो लें जी

बढ़े चौगुने दाम कि हम खुश हो लें जी।

चलते-चलते बहुत रास्ते नापे हमने,

मिला न कभी विश्राम कि हम खुश हो लें जी।

मिला वोट पा सत्ता हम भी बन बैठे बस राजा

जनता बनी गुलाम कि हम खुश हो लें जी।

दवा बिना सब टूट गई जो चलती सांसें,

मचा हुआ कोहराम कि हम खुश हो लें जी।

मन की बात सुनो तुम सब हो जाओ संजीदा,

जन मानस को दे पैगाम कि हम खुश हो लें जी।

बेंच दिया खलिहान खेत सब बेच दिया जन -जन को,

सारा देश हुआ नीलाम कि हम खुश हो लें जी।

बना दिया सरताज मुझे देकर गद्दी तुमने,

भोगो अब अंजाम कि हम खुश हो लें जी।

— वाई.वेद प्रकाश

वाई. वेद प्रकाश

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