ज़िंदगी के नज़ारे।
ज़िंदगी के भी बड़े मोहक नज़ारे हैं यहां,
काम करते हैं नहीं वे लोग प्यारे हैं यहां।
नाम के हकदार हैं वो रोज जलते धूप में।
साख अपने नाम करने लोग ठारे हैं यहां।
एक बेटा देश पर जो जान अपनी दे गया,
राजनीती कर रहे हैं लोग न्यारे हैं यहां।
ढो रहा है बोझ बचपन धूप सर्दी छांव में,
वृद्ध बैठे रो रहे हैं बे सहारे हैं यहां।
हक जमाने चल दिए सब लोग मीठा बोलकर,
वक्त जब विपरीत आया लोग खारे हैं यहां।