कहानी– मिट्टी का प्यार
टक टक चलती कुल्हाड़ियां, छू छू करता आरा बेकसूर वृक्षों को काटे जा रहा था। चहुँ और भयावह नजारा था। सुंदर छवि लिए मनमोहने खेत खलिहान सब मूक नयनों से इस आपदा को देख कर मौन थे। अनजान परिंदे भी महसूस कर रहे थे। अपने अपने घोंसले से सुरक्षित कहीं ठौर ठिकाना ढूंढने में पर फड़फड़ा रहे थे। प्रकृति की अनुपम छटा में रंगी हलदून घाटी धीरे धीरे पानी के आगोश में जल समाधि ले रही थी। लोग रो रो के बिछुड़ रहे थे। ऐसा मिलन जो कभी फिर मिल न सकने वाला दृश्य। मिट्टी से जुड़ी भावनाएं मंदिर, गुरुद्वारे जहाँ हर पल मधुर ध्वनियां गूंजा करती थी। अशांत ख़ामोश मानव निवृत पौंग डैम मे जलमग्न होने जा रहे थे।
आज कच्ची सड़क पर घूं घूं पां पां करते ट्रक समान से लदे भागे जा रहे थे। उन पर सवार परिवार के सदस्य। अपने अपने घरों से समान निकाल कर ट्रंक, खंद्धोलू, मंजे, भेड़, बकरियां गाएं, भैंसें सब के सब भर कर लें जा रहे थे। आंखों से झर झर बहता पानी हर एक की आंखों में सैलाव बन कर बह रहा था। मिट्टी की सौंधी खुशबू से विदा हो कर सुरक्षित स्थान की और निकल पड़े थे। विस्थापन का ख़ौफ दिलों दिमाग में बैठ गया था। ज़बाँ से कुछ कहा नहीं जा रहा था एक दुसरे के नयनों में बस निहार रहे थे।
पानी का बेग बढ़ता चला आ रहा था। कल कल बहता पानी नदी नालों से रूक कर बापिस हो रहा था जैसे राह भूल गया हो। पौंग बांध का पानी फूंक मार मार कर सब निगल जाना चाहता हो। विकराल रूप धर धीरे धीरे हलदून की विरासत को हड़प रहा था। चितरम्वा, डूक, करसापड़ा, हरियाणा, दरोका, मंगलवार समरालियां पानी की छाती के नीचे निर्दोष छटपटा रहे थे। सब की यही आवाज थी अब की बार बिछुड़े फिर कभी नहीं मिल पाएंगे।
सुबह हुई काली काली रात की चदरिया सिमटने लगी। ठंडी हवा चली। पिछवाड़े गोरन में बंधा बकरी का बच्चा बड़ी जोर से में में करने लगा। बुढ़ी अम्मा उठ कर गई। गोरन की साँकल खोल कर देखने लगी तो दंग रह गई। बकरी का बच्चा छटपटा रहा था। गले में बंधा जोड़ा(रस्सा) खुंडे से सट कर कस गया था। टांग मार मार कर अपनी जान बचाने की कोशिश कर रहा था। अम्मा जोर से चिल्लाई–“ओ जगींदरूआ ! बच्चा मरी गिया !अब्बो छोड़ी आ। हाए मैं क्या करां ?”, (ओ जगींदरू जल्दी आओ बच्चा मर गया है। हाए मैं क्या करूं ?) इतना कहकर जल्दी से गले में बंधा जोड़ा(रस्सी) खोलने लगी।
जगींदरू जल्दी से बिस्तर त्याग कर पिछवाड़े में जा पहुँचा। बकरी के बच्चे के गले को बड़े प्यार से सहलाने लगा। क्षण पश्चात बकरी का बच्चा दर्द न सहता हुआ अचेत हो गया।
बुढ़ी अम्मा बकरी के बच्चे की आंख खोल कर देखने लगी। निष्प्राण था। दहाड़ मार कर रो पड़ी-“अब्बो जगींदरूआ मरी गिया बच्चा!”(अरे जगींदरू बच्चा मर गया!) वह बकरी के बच्चे पर सिर रख कर ऐसा विलाप करने लगी जैसे उस का अपना बच्चा मर गरा हो।
जगींदरू अम्मा की हालत देख माँ का सिर सहलाता हुआ चुप करवाने लगा। बूढ़ी अम्मा अभी भी रोये जा रही थी। उसे लगा अम्मा पागल हो जाएगी।
पड़ोस के सभी जा चुके थे। गांव में रह गया था सिर्फ जगींदरू और उस की अम्मा। पड़ोसियों ने कई बार चलने को कहा परन्तु जगीन्दरू अम्मा के आगे बेबस था। ना नुकर करके उन्हें टालता रहा। आज इस मनहूस घड़ी में कोई पड़ोसी भी नहीं था जो अम्मा की दहाड़ सुन कर आ जाता।
जगीन्दरू की अपनी बदकिस्मती थी। दो दो शादियों के बाद भी क्वारा ही रहा। कोई औरत उस के घर टिक नहीं सकी। शायद यही उस का नसीब था। अम्मा मन ही मन इन बातों से भी क्षुब्ध थी। अम्मा और जगीन्दरू ही आपस में सहारा थे। बापु कुछ समय पहले परलोक सिधार गया था। जगीन्दरू की दो बहनें थीं जो बचपन में ही गुजर गई थी। उन को पास ही दफना दिया गया था।
अम्मा की देख भाल जगीन्दरू ही करता था -मनुहार करता हुआ स्नेह भाव से बोला –“अम्मा तू इतनी रौंदी रेंह्गी तां पागल होई जाणा। उस परमेसरे दा जे दिया ही भाणा है तिस दे अग्गे कोई क्या करी सकदा। जिन्हीं जाणा था सैह चली गिया हुण तू गांह् दी सोच। “(माँ उम इतना रोती रहेगी तो पागल हो जाओगी उस प्रभु के आगे कुछ नहीं कह सकते जिस ने जाना था वो चला गया अब आप आगे की सोचो )आज वह भी बकरी के बच्चे की मौत पर बहुत दुखी था।
उस के बापु ने बड़ी लाडली रखी थी बकरी, बापु के साथ बकरी का इतना स्नेह हो गया था बापु जहाँ भी जाता बकरी साथ होती थी। बापु कहता था जगीन्दरू यह बकरी मैंने बड़े प्यार से पाली है। तेरी अम्मा को बकरी रखने का बड़ा शौक है।
पहाड़न जो ठहरी। सच में हम पहाड़ के लोगों को भेड़ बकरियों से ज्यादा लगाव होता है। मैं बाहर नौकरी पर था तो तेरी अम्मा इन से दिल लगा कर अपना मन बहला लेती थी। बापु जब अम्मा के सामने हिंदी बोलता तो अम्मा टुकर टुकर कर बापु का मुंह देखती रहती जैसे बापु विलायत से हो कर आया हो।
यह उसी बकरी का बच्चा था जो मर गया था। बापु की सारी बातें चलचित्र सी उस के मस्तिष्क में घूम गई। अपने मन को काबू न रख पाया तो बकरी के सिर पर सिर रख कर वह भी सुबक पड़ा।
पौंग बांध का पानी निरंतर धीरे धीरे बढ़ रहा था। जगीन्दरू
के मन में एक चुंबन सी हो रही थी। भले ज्वाली में रहने के लिए जमीन खरीद ली थी। पर जाने को दिल नहीं कर रहा था।
उसे -गोहर, बड़, अम्ब, पुखर, खेतर, खूह सब याद आ रहे थे।
फिर भी जाना तो था ही।
ट्रक ले कर जगीन्दरू घर पहुँचा अम्मा रो रही थी। अम्मा के सिर हाथ फेर कर बोला-“अम्मा कजो रोया दी जाणा तां पौणाई है। दिक्ख पाणी छाल़ा मारदा औआ करदा। सारे जाई चुकियों इक अस्सां रेई गियो। सांझो भी अज्ज जाणा पौणा। “(माँ आप क्यों रो रही हो हमें यह स्थान छोड़ कर जाना ही पड़ेगा। पानी की लहरें लगातार हमारी ओर बढ़ रही हैं)
कहते कहते जगीन्दरू का गला भर आया था। सचमुच आज अन्तिम क्षण था अपनी मातृभूमि को छोड़ जाने का।
ट्रक ड्राइवर काफी देर तक देखता रहा उस की समझ में कुछ नहीं आ रहा था। जगीन्दरू कर क्या रहा है। आखिर जानने के लिए चला आया। कड़क आवाज में बोला–“ओ भाई साहब समान ट्रक में लोड करो साडे कोल इन्हा टैंम नी हैगा। राह सारे पानी नाल भर गये फेर किदां जावांगे। “(ओ भाई साहब समान ट्रक में लोड करो हमारे पास इतना समय नहीं है। रास्ते पानी से भर रहे हैं हम कैसे जाएंगे)
अम्मा जान गई थी ट्रक का मनहूस ड्राइवर ही मेरी देह को मेरी मातृ भूमि से छीनने आया है। रुंधे गले से ड्राइवर से बोली–“ओ बच्चा मेरी जिंद छड्ड। इस जगीन्दरू की लेई जा मेक्की एत्थू मरना दे। मैं इस्सा मिट्टियां च जम्मी पल़ोई, वियायी ने आई इस घरे जो सँवारिया। एह मिट्टी मेरी जान है। इस दिया खुशबूआ कन्नें मेरा रोम रोम महकिया। इस्सा छड्डी करी मैं नी जाई सकदी। “(अरे बेटा मुझे छोड़ जगींदरू को ले जा मुझे यहीं मरने दें मैं इस मिट्टी में पैदा हुई यहीं विवाह कर लाई। इस घर को सँवारा। यह मिट्टी मेरी जान है इस की खुशबू मेरे रोम रोम में भरी है। इसे छोड़ कर मैं नहीं जा सकती)। पल्ला फैला कर अपने आप को अकेला रहने की दुआ मांगने लगी।
ड्राइवर अम्मा की बात सुन कर भीतर आए गुस्से को पी गया।
अम्मा का मिट्टी के प्रति इतना प्रेम देख कर मन शीतल हो गया, आंखें नम हो आईं। अम्मा के पास बैठ कर प्यार से मनाने लगा-“अम्मा हौसला रख काह्नू रौंदी पेई एं, एह तां सारियां नाल होया। सारे एत्थों जा रहे नें। अम्मा एह देस तांई बड्डी कुर्बानी ए तुहाडी। तुसीं सब किछ छड्डिया देस लेई।
चलो सारा सामान ट्रक दे बिच रखो मैं भी तुम्हाडी मदद करांगा। “(माँ हौसला रखो क्यों रो रही हो ऐसा सभी के साथ हुआ है। सभी यहाँ से जा चुके हैं। माँ आप सब की देश के लिए यह बहुत बड़ी कुर्बानी है। आप ने सब कुछ देश के लिए छोड़ दिया। चलो आप सारा सामान ट्रक में रखो मैं आप की मदद करता हूँ। )
ड्राइवर को कुछ ख्याल आया, जगीन्दरू की तरफ इशारा कर के यह कह कर चला गया –“मैं आया तुसी अम्मा दा ख्याल रखो। ” (मैं आया आप माँ का ख्याल रखो)
ड्राइवर ट्रक ले कर तेज गति से चला गया।
जगीन्दरू थोड़ा थोड़ा समान उठा कर घर के बाहर सड़क पर ला कर रख रहा था। उस का मन ख़ौफ़ से डरा हुआ था। कहीं पानी तेजी से रास्ता रोक न ले। काफी देर तक ड्राइवर नहीं आया तो उसे देखने के लिए चला गया।
आज अम्मा को अपना पति याद हो आया। वो जवानी की बातें रूठना मनाना घर की चारदीवारी के अंदर का रोमांच उसे क्षण क्षण चुभने लगा। वह दीवारों से चिपक कर रो पड़ी। उस के शुष्क हाथ दीवारों को सहला रहे थे
अम्मा दुखी मन से तेज डग भरती पिछवाड़ें में चली आई।
न जाने उस क्षण बुढ़ी अम्मा को इतना ताकत कहाँ से आ गई उन पत्थरों को उठा उठा कर फेंकने लगी जिन के नीचे कई साल पहले उस की दो बेटियां दफनाई गई थी। रो रो के अम्मा कह रही थी–“ओ मेरी बच्चियो में तुहाजों छड्डी करी नी जाई सकदी -ओ मेरी बच्चियो तुसां दी वेदण मेरे दिला मंझ बसियो हाए ए मां तुसां ते दूर किञ्यां जाई सकदी?”(ओ मेरे बच्चियों मैं आप को छोड़ कर नहीं जा सकती आप की यादें मेरे दिल में बसी हुई हैं। मैं आप से दूर नहीं जा सकती)
फिर उसी अवस्था में रोती चिलाती श्मशान की ओर भाग पड़ी जहां कुछ साल पहले उस का पति का अंतिम संस्कार किया था। धड़ाम से श्मशान के बीच गिर पड़ी। अम्मा की हालत पागलों जैसी हो गई थी। श्मशान की काली मिट्टी उठाई अपने चेहरे पर मलने लगी—“मिंझो –अप्पु ने– मिलाई लिया जी –मैं तुसां बाजी नी– जी सकदी। मैं –दूरे ते –दिक्खी करी –मने जो पतियाइ लेंदी थी –हाए हाए! हुण तुसां की –छड्डी किञ्यां चली जां। “(मुझे अपने साथ ले चलो– मुझे अपने में मिला लो–मैं आप के बिना नहीं जी सकती–मैं दूर से देख कर अपने मन को शांत कर लेती थई–हाए हाए! मैं आप को छोड़ कर कैसे चली जाऊं। )
अम्मा विलाप किये जा रही थी और काली मिट्टी में लोट लोट कर अपनी देह से ऐसे अंगड़ाई ले रही है जैसे अपने पति से लिपट रही हो। भावनाओं का वेग प्रवल था। एक तरफ मिट्टी का प्रेम दूसरी और अपने दिवंगत पति की यादों की पीड़ा। अम्मा सुध-बुध खो बैठी थी। विक्षिप्त सी हुई तपाक से उठी पास पड़े पत्थर पर सिर दे मारा। खून का फब्बारा फूटा और अम्मा मिट्टी में मिट्टी हो गई।
जगीन्दरू अम्मा को ढूंढ ढूंढ कर थक गया था आखिर अम्मा गई तो गई कहाँ। बदहवास सा खड्ड में आए पानी में बड़ी मुश्किल से श्मशान में पहुँचा अम्मा को श्मशान में अचेत अवस्था में दें कर पांवों तले जमीन सरक गई।
ड्राइवर बहुत देर तक सड़क किनारे खड़ा इंतजार कर रहा। उसे लगा कुछ अनहोनी न हो गई हो। अम्मा का चित्र उस के मस्तिष्क में घूम गया। वह भी जोगीन्दरू की तलाश में निकल पड़ा।
अपने टूटा हुए बदन से व्यथित मन लिए जगीन्दरू ने अम्मा को दोनों हाथों में उठाया। क्षीण था जोश उस में। लड़खड़ाते कदमों से बदहवास आंखों में आंसू बहाता हुआ जाए तो कहां जाए। पानी वेग का बढ़ रहा था। अम्मा को उठाए बढ़ती लहरों की ओर बढ़ता चला जा रहा था।
ड्राइवर देख कर दंग था। वह अपनी आंखें मसल मसल कर देख रहा था। पास जाना चाहता था परन्तु पानी के ख़ौफ़ ने उस के मन में दहशत पैदा कर दी। उस के मुख से चीख निकल गई जगीन्दरू अम्मा को हाथ में उठाए पानी में समा रहा था। ख़ौफ़नाक मंजर को देख कर ड्राइवर की सांसें थम सी गई। जगींदरू अम्मा को लिए कब पौंग के जलाशय में समां गया पता न चला। उस के दोनों हाथ श्रद्धांजलि देने के लिए जुड़ गये। आंखों में आंसू भर कर उस वाहेगुरु जी से इतना ही कह पाया -“-हे सच्चेपातशाह दोनों रूहानी नू अपणी चरनी लगा लेंमी। धन्य तुसां दोनों दा मां मिट्टी नाल प्यार। ” (हे प्रभु आप दोनों आत्माओं को अपनी शरण में ले लेना। धन्य आप दोनों का मां मिट्टी का प्यार)। कहते कहते ड्राइवर का गला भर आया, आंसू पोंछता हुआ तेज गति से अपने ट्रक की और बढ़ने लगा। पानी उस से कुछ दूरी पर पीछा कर रहा था।
— शिव सन्याल