कुण्डली/छंद

 दिल न दुखाइये

तलवार से भी तेज,

जीभ कटार की धार,

अस्त्र जैसी चुभन से,

 दिल न दुखाइये।।

वाणी रसाल, मधुर,

वीणा-सी स्वर झंकार,

मनमंदिर में दीप,

भक्ति का जलाइये।।

हर्षित हो बागबान,

यथोचित हो समान,

कर्म हो धर्मानुरागी,

प्रेम छितराइये।।

नवांकुर संगोपन,

कर्तव्य कर्म प्रधान,

उत्सव, मेले, त्यौहार,

संस्कृति सहेजिये।।

*चंचल जैन

मुलुंड,मुंबई ४०००७८