गीत/नवगीत

मुस्कराया करो

कभी बेमतलब भी बतियाया करो
‌बिना काम के आया जाया करो
हाल चाल, पूछते रहिये जनाब
बाद में, अफसोस न जताया करो
कभी बेवजह भी मुस्कराया करो।

उलझनें हजारों, सुलझ जाएंगी
दूरियां पल में , सिमट जाएंगी
एक फोन की , गड़गड़ाहट पर
दोस्ती का फर्ज, निभाया करो
कभी बेवजह भी, मुस्कराया करो।

‌ खुद से, बातें करके आखिर, क्या मिलेगा
घर में, दुबके रहकर गम कैसे, घटेगा
ऋतु सुहानी है मजा ले लीजिए
गीत कोई, मस्त गुनगुनाया, करो।
कभी बेवजह भी मुस्कराया करो।।

औपचारिकताओं, में क्यों उलझ कर, रह जाएं हम
बेझिझक, सबसे मिलें क्यों इतना, हिचकिचाएं हम
राज अपने, दिल के बांटो मसले , सुलझाया करो।
कभी बेवजह भी मुस्कराया करो।।

घर पे जा के, मिल सको तो इससे बेहतर, कुछ नही
हाले बयां, कर सको तो इससे बढ़कर, कुछ नही
कुछ अगर, दुसवारिया हों तो संदेश, भिजवाया करो
कभी बेवजह भी मुस्कराया करो।।

वरिष्ठ नागरिक, हो गये तो क्यों मुस्कराना, छोड़ दें हम
कुछ खता यदि, हो गयी तो गम्भीरता क्यों, ओढ़ लें हम
वह ज़िन्दगी, भर का तजुर्बा खुल के, आजमाया करो
कभी बेवजह भी मुस्कराया करो।।

कभी बेमतलब भी बतियाया करो
कभी बेवजह भी मुस्कराया करो

— नवल अग्रवाल

नवल किशोर अग्रवाल

इलाहाबाद बैंक से अवकाश प्राप्त पलावा, मुम्बई