नया अध्याय
“माँ…! बाबूजी बाजार जाएँगे तो अंग्रेजी की पुस्तक और गणित के लिए एक मोटी काॅपी ले आएँगे। बोल देना। मैंने अपना सवाल रफ काॅपी में हल कर लिया है। शाम को स्कूल से आने के बाद गणित काॅपी में फिर हल करूँगी। अभी मैं श्यामा के घर जा रही हूँ। उधर से ही स्कूल जाऊँगी।” कक्षा छठवी की सुमन अपनी माँ आशा को बताते हुए स्कूल के लिए घर से निकली।
“हाँ… ठीक है बिटिया ! बोल दूँगी तुम्हारे बाबूजी को। पर अभी स्कूल जल्दी जाओ। समय हो रहा है।” आशा किचन में व्यस्त थी; फिर भी खिड़की से झाँकते हुए बोली।
सुमन, श्यामा और श्रुति स्कूल जा रही थीं। तीनों सहेलियाँ अपने गृहकार्य सम्बंधित बातें बतिया रही थीं। चूँकि स्कूल गाँव से थोड़ा बाहर था। समय भी हो रहा था। इसलिए वे थोड़ी तेजी से चल रही थीं। सड़क की हालत भी खराब थी। सड़क के दोनों किनारे छोटे-छोटे गड्ढे हो गये थे। बारिश की वजह से गड्ढों में पानी भरे हुए थे। बस वे स्कूल पहुँचने ही वाले थे ; तभी तेजी से एक कार आयी। उसमें तीन-चार मनचले युवक बैठे थे। स्कूल जाती लड़कियों पर उनका ध्यान नहीं रहा। कार सर्र… से निकल गयी। कीचड़युक्त पानी लड़कियों पर छिटक गये। श्रुति और श्यामा के कपड़ों पर तो न के बराबर कीचड़ लगे। लेकिन सुमन के न सिर्फ सर व चेहरे पर कीचड़ लगे, बल्कि उसकी स्कूल युनीफाॅर्म पूरी तरह खराब हो गयी। उसे कारवालों पर बहुत गुस्सा आया।युनीफाॅर्म देख उसे रोना भी आ रहा था। श्यामा और श्रुति को भी अच्छा नहीं लगा। तीनों एकदम चुप हो गयीं। फिर सुमन की रोनीसूरत देख श्यामा बोली- “तेरी ड्रेस तो बिल्कुल खराब हो गयी सुमन। मत चल बहन स्कूल आज। पहले अपनी ड्रेस बदल कर आ जाओ घर से।”
“हाँ सुमन। श्यामा सही कह रही है। थोड़ी देर हो भी जाएगी, तो कोई बात नहीं।” श्रुति ने सुमन के चेहरे को रूमाल से साफ किया और उसके बैग को झाड़ने लगी। तभी श्यामा अपनी बैग से कागज के कुछ टुकड़े निकाल कर सुमन के बाल साफ करने लगी। श्रुति की ओर इशारा करते हुए बोली- “यदि तुम चाहती हो तो हम दोनों यहीं पर घर से आते तक तुम्हारा इंतजार कर लेते हैं। लेकिन जाओ बहन घर। तुम्हारी ड्रेस खराब हो चुकी है।”
थोड़ी देर बाद सुमन सिसकते हुए बोली- “श्यामा ! मेरे पास तो एक ही स्कूल ड्रेस है। दूसरी युनीफाॅर्म तो पंद्रह अगस्त तक सिलवा पाएँगे।”
“तो फिर आज मत चल स्कूल। हम लोग आरती मैडम जी को बता देंगे पूरी बात। जा घर। मत आना।” श्यामा ने सुमन के बैग को उसके पीठ पर लटकाया।
“आज जो भी होमवर्क मिलेगा; तुम्हें बता देंगे। ठीक रहेगा ?” श्रुति बोली।
“नहीं श्यामा ! मैं स्कूल जाऊँगी श्रुति। स्कूल जाकर हाथ-पैर और चेहरा धो लूँगी। ड्रेस को पोंछ कर साफ कर लेती हूँ। कुछ टाइम के बाद ये सुख जाएँगे।” अपनी बैग सम्भालते हुए सुमन बोली।
“आज बस स्कूल नहीं जाओगी तो क्या बिगड़ जाएगा ?” श्यामा बोली। सुमन ने उन दोनों की बातों पर ध्यान नहीं दिया। वह घर वापस गयी ही नहीं। फिर तीनों बातें करते-करते स्कूल पहुँच गयीं।
प्रार्थना हो गयी थी। कक्षाएँ लग चुकी थी। सुमन, श्यामा और श्रुति सकपकाते हुए अपनी कक्षा की ओर बढ़ रही थीं; तभी उन पर प्रधानाध्यापक कुशल ठाकुर जी की नजर पड़ी। अपने पास बुलाये। देर से आने का कारण पूछा। तीनों लड़कियों ने ठाकुर जी को पूरी बात बतायी। फिर ठाकुर जी ने कक्षाध्यपिका आरती जी को बुलवाया। आरती जी को भी माजरा समझ आ गया। उन्होंने स्कूल में रखे अतिरिक्त स्कूल युनीफाॅर्म्स में से एक युनीफाॅर्म निकाल कर सुमन को दिया।
तत्पश्चात सुमन कक्षा में आकर श्यामा और श्रुति के पास बैठी। अध्यापन प्रारम्भ करने से पहले आरती जी ने कहा- “ड्रेस पर कीचड़ हो गया तो घर जाकर बदल कर आना था; या फिर आज स्कूल ही नहीं आना था। फिर सुमन बोली- “मैडम जी, मेरे पास एक ही स्कूल ड्रेस है। बाबूजी पंद्रह अगस्त के पहले खरीदेंगे।”
“ठीक है…” कहते आरती जी बोली- “आज मेरी बात ध्यान से सुनो। सड़क किनारे हमेशा बायीं तरफ ही अपने आगे-पीछे देख कर चला करो। चलते-चलते फिजूल की बातें मत किया करो। गाड़ी-मोटर की आवाज सुनते ही अपने साइड पर खड़े होकर उन्हें जाने दिया करो। ये बात सिर्फ सुमन के लिए ही नहीं है। ये सबके लिए है।” “जी मैडमजी…! कहते हुए बच्चे आरती जी की बातें बड़े से सुन रहे थे।” आरती जी ने अपनी बातें जारी रखी- “जैसे कि अभी बरसात का मौसम है, इसलिए पानी भरे गड्ढों पर विशेष ध्यान दिया करो। जैसे ही कोई दुपहिया या चारपहिया गाड़ी दिखती है, तो तुरंत उनसे दूर होकर उन्हें पहले जाने दिया करो। हाँ, सुमन तुम कुछ कहना चाहती हो ?”
“जी मैडमजी।” सुमन कहने लगी- “मैं अपनी स्कूल युनीफाॅर्म कीचड़ से सनने के बावजूद स्कूल आयी क्योंकि आपने गृहकार्य पूरा करके आने के लिए कहा था। मैंने अपना गृहकार्य पूरा कर लिया है। भूगोल के उन सभी प्रश्नों का उत्तर याद भी कर लिया है, जिन्हें आपने याद करके आने के लिए कहा था। कंठस्थ कर लिया है मैंने मैडमजी। चाहे तो आप पूछ सकती हैं। आज आप नया अध्याय “सौरमंडल” समझाने वाली भी हैं न। नया अध्याय को मैं समझना चाहती हूँ मैडमजी। नया अध्याय न छुट जाए सोचकर वापस घर नहीं गयी; और मैं स्कूल आ गयी मैडमजी।” पूरी कक्षा ने सुमन की अविरल बातें सुनी।
“यह तो बहुत अच्छी बात है। मानना पड़ेगा सुमन तुम्हें।” कक्षाध्यापिका आरती जी ने मुस्कुराते हुए सुमन की पीठ थपथपाई। कहा- ” बच्चों ! अपनी पढ़ाई के प्रति सुमन का रूझान काबिले-तारीफ है। यह सब पूरी कक्षा के लिए एक नई सीख है। सचमुच आज सुमन तुम सब के लिए एक नया अध्याय है।” सुमन पर पूरी कक्षा की एकटक नजर थी।
— टीकेश्वर सिन्हा “गब्दीवाला”