मुक्तक/दोहा

दोहे : स्वतंत्रता का मोल

स्वतंत्रता संग्राम का,गौरवमयी अतीत।

मिलजुल कर सबने लड़ा,तो मिल पाई जीत।।

अगणित न्योछावर हुए,गुमनामी में वीर।

हँसते-हँसते मिट गए,मतवाले रणधीर।।

स्वतंत्रता संग्राम के,नायक बस कुछ खास।

किससे पूछें बोलिए,छुपा हुआ इतिहास।।

अगणित भाषा-बोलियाँ,अगणित है परिवेश।

गौरवशाली लाड़ला,मेरा भारत देश।।

अपनों ने धोखा दिया,किया मुल्क निस्तेज।

सदियों शासन कर गए,मुट्ठी भर अंग्रेज।।

संघर्षों का दौर है,अभी कहाँ विश्राम।

खुद से खुद का चल रहा,स्वतंत्रता संग्राम।।

हम सब को हर हाल में,रखना होगा ध्यान।

धर्म जाति मज़हब नहीं,पहले देश महान।।

जल-थल-नभ सेना यहाँ,अलग-अलग गणवेश।

लेकिन सबका ध्येय है,अखंड  भारत देश।।

स्वतंत्रता अनमोल है,राष्ट्र प्रेम सर्वोच्च।

यही सभी की भावना,रहे सभी की सोच।।

दो टुकड़ों में बँट गया,देश रूप  कश्कोल।

ह्रदय विदारक था ‘कमल’,स्वतंत्रता का मोल।।

   — कमलेश व्यास ‘कमल’

   

कमलेश व्यास 'कमल'

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