वास्तविक विजय
कई लोगों के जीवन में ऐसा होता है कि कोई फरिश्ता आता है, उसका हाथ पकड़कर उसे आगे जाता है। भीड़ में छुपी उसकी प्रतिभा को पहचान दिलाता है। अच्छी बात है अगर आपके जीवन में भी ऐसा ही कोई फरिश्ता आए और आपको आम से खास बनाने में आपकी सहायता करें। लेकिन क्या यह आपकी वास्तविक विजय होगी? नहीं।
अगर आपको सहारो के बल पर आगे बढ़ने की आदत हो गई तो आप हर जगह ऐसे ही सहारा ढूंढ़ते फिरेंगे। इसका सीधा सा मतलब ये भी हो सकता है कि आपको अपनी काबिलियत पर भरोसा नहीं है। जहाँ सहारे की उम्मीद नहीं हो वहाँ सहारा मत मांगो, एक झटके में अपना स्वाभिमान खो बैठोगे।
आप जो करना चाहते है उसे आत्मबल से कीजिए। सहायता ना मिलने पर निराश होने के बजाय सही अवसर की तलाश कर धैर्य के साथ आगे बढे़। आपकी वास्तविक विजय तभी होगी जब आपको किसी से सहारे की कोई उम्मीद नहीं हो फिर भी आप स्वयं आगे आकर अपनी पहचान बनाने में सफल होंगें। इसमें संघर्ष भले ही अधिक होगा परन्तु ये कामयाबी केवल और केवल आपकी कामयाबी होगी। आपके धैर्य और साहस की विजय ही आपकी वास्तविक विजय होगी। तो फरिश्ते की प्रतीक्षा में हाथ पर हाथ रखकर बैठने के बजाय प्रयत्न करते रहें। आपकी जीत अवश्य होगी।
आपकी कमजोरियों को कोई दूर करने में सक्षम है तो वो आप स्वयं। अपनी कमियों और खूबियों को पहचानिये और प्रयास में लगे रहे।
“करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान,
रसरी आवत जात ते सिल पर परत निसान”।
— नीतू शर्मा मधुजा