पुरुषोत्तम मास – अधिकस्य अधिकम् फलम्
इन दिनों सर्वत्र पुरुषोत्तम मास यानि की अधिक मास की धूम है। मन्दिरों, मठों, आश्रमों से लेकर सत्संग और कथा पाण्डालों तक हर कहीं भगवदीय आनन्द का दिग्दर्शन चरम यौवन पर है।
तीन साल में एक बार आने वाला यह संयोग श्रद्धा और भक्तिभाव का ज्वार उमड़ा रहा है। संत-महात्माओं से लेकर आम भक्तों और पण्डितों, कथावाचकों तक सारे के सारे इन्हीं मेंं व्यस्त दिखाई देने लगे हैं।
श्रीविग्रहों के मनोहारी श्रृंगार और भजन-कीर्तनों की धूम का माहौल अधिक मास के धार्मिक आनंद को बहुगुणित कर रहा है। तकरीबन यही स्थिति हर ओर है।
ईश्वरीय कृपा प्राप्ति और दुर्लभ मनुष्य देह के कल्याण की दिशा में यह माह अपने आप में अद्भुत ईश्वर प्रदत्त अवसर है जिसका पूरा-पूरा लाभ उठाकर भक्त अपने उद्धार का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं।
इस दृष्टि से समझदार भक्त हमेशा यही प्रयास करते हैं कि अधिक मास में जितना अधिक दान-पुण्य और भक्तिभाव करें, उतना अधिक कल्याण्कारी है। प्रत्येक मनुष्य के जीवन में सर्वाधिक महत्त्व अवसर का ही है। जो इन अवसरों पर सचेत रहकर भक्तिभाव में रम जाता है उसकी काया का कल्याण हो जाता है।
इसके लिए भगवदीय बुद्धि और मनुष्य जीवन के लक्ष्य को सामने रखकर विवेक के साथ निर्णय लेने की जरूरत है और यह कार्य सामान्य इंसान कभी नहीं कर सकता।
अधिक मास में जितना अधिक पुण्य का महत्त्व है उतने ही अधिक खतरे भी हैं। इस मास में धर्म भाव और भक्ति आदि का जितना कई गुणा अधिक फल प्राप्त होता है उतना ही इस माह में निषिद्ध कर्मों और परोक्ष-अपरोक्ष पाप का भी कई गुना फल जीवात्मा के खाते में जुड़ जाता है।
इस दृष्टि से पूर्ण संयम के साथ अधिक मास के नियमों और परंपराओं का परिपालन करना जरूरी है। इस मास में सर्वाधिक ध्यान शुचिता, खान-पान और लोक व्यवहार का रखना जरूरी है।
शुचिता के साथ उपासना और जीवन व्यवहार अपनाए जाने पर अधिक मास में भगवान की कृपा का ग्राफ बढ़ जाता है और इससे हमारे लौकिक एवं अलौकिक लक्ष्यों की प्राप्ति में सम्बल प्राप्त होता है।
भक्तों का प्राथमिक ध्यान इस दिशा में केन्द्रित होना चाहिए कि इस माह में अधिक से अधिक भक्तिभाव और पात्रजनों से लेकर गौवंश सहित जीव-जन्तुओं के लिए कुछ न कुछ करें। तीन वर्ष का समय बहुत अधिक लम्बा होता है और ऐसे में अगले अधिक मास तक हम रहें न रहें, इसलिए जो समय सामने है उसका पूरा-पूरा धर्म लाभ लेने में पीछे न रहें।
इस अवसर को हाथ से न जाने दें, जितना अधिक हो सके उतना करने का प्रयास हम सभी को करना चाहिए। अधिक मास जैसे अवसर ईश्वर हम पर कृपा कर देता है ताकि जो हम जीवन के लम्बे सफर में सांसारिक प्रपंचों और परिवेशीय व्यस्तताओं की वजह से चाहते हुए भी नहीं कर पाते हैं, उन धार्मिक परम्पराओं का पालन कर एक ही माह में अधिकाधिक फल प्राप्त कर सकें।
इसका यह अर्थ नहीं कि अधिक मास के बाद फिर जैसे थे वैसे। बल्कि अधिक मास यह संदेश देता है कि अधिक से अधिक समय ईश्वरपरायण होकर भक्ति भाव और परोपकार में लगाएं और श्री वेदव्यास के इन वचनों का पालन करते हुए अपने किसी कर्म से किसी को भी पीड़ित न करें बल्कि अपने आपको सेवा एवं परोपकार में समर्पित कर पुण्यार्जन करते हुए पुण्य में अभिवृद्धि करते हुए परम धाम् को प्राप्त होने की दिशा में आगे बढ़ें –
अष्टादश पुराणेषु व्यासस्य वचनद्वय, परोपकाराय पुण्याय पापाय परपीडिनम्।
— डॉ. दीपक आचार्य