इतिहास के दर्पण में भारतीय राष्ट्र-ध्वज तिरंगा
राष्ट्रीय ध्वज किसी राष्ट्र एवं देश के गौरव, गरिमा एवं गर्व का हेतु होता है। राष्ट्र-ध्वज राष्ट्रीय स्वाभिमान, शौर्य-पराक्रम एवं सांस्कृतिक परंपरा का द्योतक है। ध्वज में लोक का असीम प्रेम, त्याग एवं समर्पण प्रतिबिम्बित होता है। ध्वज राष्ट्र की पहचान है, प्रतिष्ठा है। ध्वज किसी वस्त्र का टुकड़ा मात्र नहीं होता बल्कि उसके धागे-धागे में राष्ट्रीय अस्मिता, लोक आस्था एवं व्यवहार और इतिहास बोध गुंथा होता है। ध्वज से नागरिकों का रागात्मक आत्मीय सम्बंध होता है। इसीलिए गगनांचल में फहरते ध्वज के दर्शन मात्र से ही तन-मन में नवल शक्ति का संचार और हृदय में अनंत उत्साह का उदय होता है। आकाश पुरुष के वक्षस्थल पर लहराता राष्ट्रध्वज जहां नागरिकों के उर एवं नयनों में हर्षोल्लास, धैर्य एवं निर्भयता उत्पन्न करता है तो वहीं शत्रुओं के दिलों में भय एवं चरणों में कंपन। प्रत्येक देश का अपना एक राष्ट्र ध्वज होता है जो देश की एकता-अखंडता, आशा एवं आकांक्षा को व्यक्त करता है। भारत का राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा नाम से विश्व विश्रुत है। तिरंगा के तीन रंग हर नागरिक को प्रेरित एवं प्रोत्साहित करते हैं। केसरिया त्याग, प्रेम, साहस, सामर्थ्य एवं बलिदान का पाठ पढ़ा रहा है तो श्वेत रंग शांति, सत्य, अहिंसा, धवलता का सुखद संदेश सुना रहा है। राष्ट्र जीवन में सुख, समृद्धि शुभता की कथा बांचता हरा रंग लोक में सम्पन्नता, हरीतिमा बिखेर रहा है। नील वर्णी चक्र जीवन की गतिशीलता, कर्म सातत्य को इंगित कर चरैवेति के वैदिक उपदेश का घोष कर रहा है। चक्र के चौबीस आरे (तीलियां) जीवन मूल्यों के चौबीस मानक स्तम्भ हैं, वर्ष के पक्ष हैं। यह तिरंगा हर भारतवासी के लिए प्राणों से प्रिय है। तिरंगे का सम्मान प्रत्येक नागरिक के लिए सर्वोपरि है।
भारत के राष्ट्रध्वज तिरंगे के इतिहास एवं विकास पर दृष्टिपात करें तो शताधिक वर्षों के विभिन्न पड़ाव और प्रयास दृष्टिगोचर होते हैं। 1904 में स्वामी विवेकानंद की शिष्या भगिनी निवेदिता ने एक चौकोर ध्वज प्रस्तुत किया, जिसकी लाल पृष्ठभूमि के मध्य में पीले रंग से बज्र अंकित था। बज्र के बायीं ओर वंदे तथा दायीं ओर मातरम् पीले रंग से बांग्ला में लिखा गया था, किनारों पर एक सौ एक ज्योति बनाई गई थीं। हालांकि यह ध्वज बिल्कुल अचर्चित रहा। 7 अगस्त, 1906 को कलकत्ता में बंग-भंग के विरोधी आंदोलन की प्रथम वर्षगांठ पर शचीन्द्र नाथ बोस द्वारा तैयार लाल, पीले, हरे रंग की तीन क्षैतिज पट्टियों वाले एक ध्वज को सुरेंद्र नाथ बनर्जी ने फहराया था जिसमें ऊपर की हरी पट्टी में 8 कमल, नीचे की लाल पट्टी में सफेद रंग से सूरज और चांद और बीच की पीली पट्टी में वंदे मातरम लिखा हुआ था। 22 अगस्त, 1907 को मैडम भीकाजी कामा एवं सरदार राणा सिंह द्वारा श्यामजी कृष्ण वर्मा और लाला हरदयाल के सहयोग से निर्मित एक ध्वज पेरिस में फहराया गया। इसमें ऊपर केसरिया पट्टी में आठ कमल, पीले मध्य भाग में वंदे मातरम् और नीचे हरी पट्टी में सफेद रंग से बायीं ओर सूरज और दायीं ओर अर्द्ध चंद्र अंकित थे। यह ध्वज गुजरात में राणा परिवार में आज भी सुरक्षित रखा है। वर्ष 1917 में होमरूल आंदोलन के दरमियान एनी बेसेंट और लोकमान्य तिलक ने एक ध्वज फहराया जिसमें ऊपर से क्रमशः पांच लाल और चार हरी क्षैतिज पट्टियां एक के बाद एक जुड़ी थीं। फलक पर आकाश में उगते सप्त ऋषि मंडल के विन्यास पर सात सितारे बनाए गए थे। ऊपर बायें किनारे पर यूनियन जैक तथा दूसरे किनारे पर सफेद रंग से चांद और तारा अंकित किए गए थे। यह सभी प्रयास एक प्रकार से वैयक्तिक थे और इन्हें किसी संस्था या संगठन द्वारा न तो स्वीकृत किया गया और न ही ये ध्वज प्रयोग में लगातार जारी रहे। सन् 1921 में एक गंभीर प्रयास दिखाई देता है। आंध्र प्रदेश में 1876 में नियोगी ब्राह्मण कुल में जन्मे कैंब्रिज विश्वविद्यालय से स्नातक, हीरा खदानों के विशेषज्ञ, कृषि वैज्ञानिक पिंगली वेंकैया ने विश्व के प्रमुख राष्ट्रीय ध्वजों के पांच वर्षों के अपने गहन शोध के पश्चात एक ध्वज बनाकर कांग्रेस के विजयवाड़ा (आंध्रप्रदेश) अधिवेशन में गांधी जी को दिखाया, जिसमें ऊपर लाल और नीचे हरे रंग की दो क्षैतिज पट्टियां थीं। गांधी जी को यह ध्वज पसंद आया और उनके सुझाव पर इसमें सबसे ऊपर एक सफेद पट्टी और जोड़ी गई। यह ध्वज समय-समय पर कांग्रेस के अधिवेशन में फहराया जाता रहा। हालांकि इस ध्वज को भी कांग्रेस द्वारा स्वीकृति नहीं मिली थी। 1931 के कराची अधिवेशन में पिंगली वेंकैया के ध्वज को परिमार्जित कर एक नया ध्वज बनाया गया जिसमें ऊपर केसरिया मध्य में सफेद और नीचे हरे रंग की तीन क्षैतिज पट्टियां थी। बीच के सफेद हिस्से पर गांधी जी का चलायमान चरखा चित्रित किया गया। इसको कांग्रेस ने स्वीकार किया और इसे ‘स्वराज ध्वज’ नाम से देश भर में पुकारा जाने लगा। यही ध्वज सभी धरना-प्रदर्शनों, प्रभात फेरियों, आंदोलनों और कांग्रेस के अधिवेशन में फहराया जाता रहा। एक प्रकार से यह तिरंगा ध्वज राष्ट्र की चेतना का संवाहक बन गया। स्वतंत्रता प्राप्ति के समय संविधान सभा ने जून 1947 में डाॅ. राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में झंडा समिति बनाई। 22 जुलाई 1947 को जवाहर लाल नेहरू के प्रस्ताव पर संविधान सभा ने वर्तमान ध्वज को अंगीकृत किया। झंडा समिति के सुझाव पर चरखे के स्थान पर सम्राट अशोक के प्रस्तर स्तम्भ पर उत्कीर्ण धर्मचक्र को स्थान दिया गया जो राष्ट्रजीवन की गतिशीलता एवं नैरंतर्य का प्रतीक है। यह भी ध्यातव्य है कि श्यामलाल गुप्त पार्षद विरचित विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा को 1938 में कांग्रेस के हरिपुरा अधिवेशन में अध्यक्ष नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने झंडा गीत घोषित किया था।
भारत के गणतांत्रिक राज्य बनने के बाद 1951 में भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा पहली बार एवं पुनः 17 अगस्त, 1968 को तिरंगा ध्वज निर्माण के मानक निश्चित किए गए। ध्वज की लम्बाई एवं चौड़ाई में 3 अनुपात 2 का सम्बंध होता है। तिरंगा ध्वज हाथ से काते गए सूती धागों से निर्मित खादी के वस्त्र से बनाया जाता है। कपास से धागा बुनने से लेकर ध्वज बनाने की प्रक्रिया तक विभिन्न परीक्षण किए जाते हैं। इस खादी कपड़े की बुनाई विशेष और दुर्लभ है। कर्नाटक खादी ग्रामोद्योग संघ, हुबली ही एक मात्र संस्थान है जहां से झंडे निर्माण एवं आपूर्ति किये जाते हैं। प्रति वर्ष देश भर के खादी भंडारों से लगभग चार करोड़ तिरंगा ध्वज बिकते हैं। उद्योगपति नवीन जिंदल के प्रयासों से 26 जनवरी, 2002 से देश के प्रत्येक नागरिक को किसी भी दिन अपने मकान, कार्यालय, कारखानों में तिरंगा फहराने का गौरव प्राप्त हुआ है। पर ध्वज का स्पर्श भूमि, जल एवं फर्श पर नहीं होना चाहिए। तिरंगा से ऊंचा अन्य कोई ध्वज नहीं लगाया जा सकता। ध्वज को पर्दे, मेजपोश, सजावट, वंदनवार, वस्त्रों के रूप में उपयोग करना दंडनीय है। उल्लेखनीय है कि आजादी के बाद साढ़े तीन आने का देश का पहला डाक टिकट 24 नवम्बर, 1947 को जारी किया गया था जिसमें तिरंगा ध्वज अंकित था एवं देवनागरी में जय हिन्द लिखा था। आइए गणतंत्र दिवस के अवसर पर हम सभी भारतवासी समवेत स्वरों में ध्वज का वंदन अभिनंदन कर अपनी श्रद्धा एवं भाव प्रसून अर्पित करें।
— प्रमोद दीक्षित मलय