जश्ने-आजादी मना लो
जश्ने-आजादी मना लो मुस्करा लो ऐ वतन!
है मुबारक़ दिन ये’ जिनसे उन शहीदों को नमन।।
हर ख़ुशी अपनी भुला जो मुल्क पर होते फिदा।
नूर है उनसे फ़लक पर ज़िन्दगी उनसे चमन।।
भूलना मुमकिन नहीं उनकी शहादत को कभी।
नाज़ सारे देश को है, हैं सजल सबके नयन।।
माँ के आँचल की दुआओं का असर ऐसा हुआ।
जाँ हथेली में लिये बाँधे रहे सिर पर कफ़न।।
आब है उनकी बदौलत गुनगुनाती है सबा।
चूमता रहता तिरंगा चाँद सूरज का बदन।।
उस वफ़ादारी मुहब्बत से महकती है फ़ज़ा।
हैं सलामत आज उनसे शोखियाँ औ बाँकपन।।
आँख के तारे वही उनसे ‘अधर’ है ज़िन्दगी।
वो अमर हैं जब तलक़ हैै ये धरा सारा गगन।।
— शुभा शुक्ला मिश्रा ‘अधर’