अंजान सा
दुनिया की भीड़ में खड़ा अंजान सा वो है
तनहाई में डूबा हुआ वीरान सा वो है
खोया हुआ है उसका, अपना कहीं कोई,
दुनिया से नहीं खुद से भी, हैरान सा वो है।
खुशियों से भरी महफ़िल में बैठ के भी वो
डूबा हुआ ग़मों में, पशेमान सा वो है।
कागज़ से कोरे गमज़दा, रुख़ पे कोई जैसे,
अश्कों से लिख दिया हो, फ़रमान सा वो है।
बिखरे हुए हैं हरसू, यूं कांच के टुकड़े,
टूटे हुए इस दिल के, ऐवान सा वो है।
— पुष्पा अवस्थी “स्वाती”