कविता

अधूरे ख्वाब

नई पीढ़ी का हर प्राणी

कुछ ख्वाब लेकर आंखें खोल रहा है,

आजाद देश में जन्म ले रहा है

ख्वाबों के साथ जीना उसका अधिकार भी है।

पर बहुत अफसोस होता है उसे

जब उसके ख्वाब महज ख्वाब रह जाते हैं,

उसके ख्वाब हवा में उड़ा दिए जाते हैं

राजनीति की आड़ में उड़ा दिये जाते हैं

धर्म, जाति, भाषा के तराजू में तौला जाता है।

उसके ख्वाबों के साकार करने का

दिवास्वप्न दिखाया जाता है।

तब वो आजाद देश का प्राणी रोकर रह जाता है।

पर ख्वाबों का दामन नहीं छोड़ता,

और अधूरे ख्वाब में जीवन गुजार देता है,

अंत में अधूरे ख्वाब की टीस लिए

दुनिया से विदा हो जाता है।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921