आदमी पर चंद अश’आर
खा जाता है हुजूर आदमी को
आदमी का गुरूर आदमी को।
बनाता है नेको-बद आदमी को
आदमी का शऊर आदमी को।
सिखलाता है सबक आदमी को
आदमी का कुसूर आदमी को।
दिखलाता है ऐनक आदमी को
आदमी का सुरूर आदमी को।
करता है परेशान आदमी को
आदमी का फितूर आदमी को।
— नरेन्द्र सोनकर ‘कुमार सोनकरन’