गीतिका/ग़ज़ल

गज़ल

चलते है खुले आसमां में घर लेकर

अपने भीतर कितने ही मंजर लेकर

खोने के लिए कुछ भी पास नहीं उनके

फिर भी पीछे पड़े है क्यों पत्थर लेकर

प्यास वे ही उसकी बुझा सकते यारों

चलते अपने भीतर जो समंदर लेकर

मिटाने है भूखे की भूख यहाँ जो

उनके लिए निकले अपना लश्कर लेकर

करते है तरक्की का इस तरह प्रचार वे

चलते है हाथों में खुद पोस्टर लेकर

अवाम की फि़जा बिगाड़ने की ठानी है

अतः निकले है हाथों में पत्थर लेकर

वादा किया था महका देंगे चमन को

मगर आये है पास वे पतझर लेकर

झूठ जिनकी जुबां में है कायम रमेश

वे निकले ईमान का जेवर लेकर

— रमेश मनोहरा

रमेश मनोहरा

शीतला माता गली, जावरा (म.प्र.) जिला रतलाम, पिन - 457226 मो 9479662215