ग़ज़ल
ढोंगी और दग़ाबाज़ों की छद्म कहानी पर
छलियों साधो मौन सगों की बे ईमानी पर
वक्त पड़े जो सच्चाई का साथ नही देंगे
वक्त लिखेगा कायर उन सबकी पेशानी पर
सिसकी ख़ूब कलम, कविताएं हिड़की दे रोईं
सत्तासीनों की आँखों के मरते पानी पर
तुमको भारत की लुटती अस्मत से क्या तुम तो
ताली पीटो घड़ियालों की राम कहानी पर
नौ दिन देवी कह पूजा करने वालों के क्यूँ
टूटे हाथ नही जिस्मों की खींचातानी पर
जो ज़ालिम से ड़रकर जुल्मों से लड़ना छोड़े
लानत भेजो ऐसी नामाक़ूल जवानी पर
अंतस की आँखें भी पथराने को हैं बंसल
कितना रोऊँ इंसां में बढ़ती शैतानी पर
— सतीश बंसल