धीरे-धीरे
दूर क्षितिज पर सूरज डूबा धीरे – धीरे
सागर के आगोश में समाया सूरज धीरे -धीरे !
अभी तलक जो सूरज टिका था पेड़ों की शाखाओं पर
गहन बादलों में अस्ताचल हुआ धीरे-धीरे !
लोहित रंग फैला था अब तक जो आसमानों में
रात की कालिमा गहराई धीरे-धीरे !
उड़ते परिंदों की लम्बी कतारें
लौट चली अपने घोंसलों की ओर धीरे-धीरे !
तारों जुगनुओं ने कर ली है तैयारी
सारी रात टिमटिमाने को धीरे-धीरे !
नींद से बोझिल आंखें आतुर है सो जाने को
मन बावरा है सपनों में खो जाना धीरे-धीरे!
— विभा कुमारी नीरजा