प्लास्टिक बंदी
“क्या कहा ? तुम यहाँ मुख्यमंत्री जनदर्शन में कुछ मांगने नहीं, बल्कि देने के लिए आए हो ?” उस साधारण वेशभूषा में खड़े देहाती किसान से मुख्यमंत्री के सेक्रेटरी ने आश्चर्य से पूछा।
“हाँ सर, आपने बिलकुल सही सुना। मैं यहाँ सचमुच कुछ मांगने नहीं, बल्कि देने आया हूँ।” किसान ने पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा।
“अच्छा तो फिर देर क्यों ? जो भी देना है, जल्दी दो, अभी और भी बहुत से लोग लाइन में खड़े हैं।” इस बार मुख्यमंत्री जी ने कहा।
“सर, मैं आपको देने के पहले एक बात पूछना चाहता हूँ कि क्या आप सच में ये चाहते हैं कि हमारे राज्य में हानिकारक प्लास्टिक का उपयोग बंद हो जाए ?” किसान ने पूछा।
“बिल्कुल, मैं तो चाहता हूँ कि जल्द से जल्द हमारे राज्य में हानिकारक प्लास्टिक का उपयोग बंद हो जाए।” मुख्यमंत्री जी ने कहा।
“सर जी, इसी सम्बन्ध में मैं आपको एक सलाह देने ही यहाँ आया हूँ।” किसान ने कहा।
“बताओ, तुम्हारी क्या सलाह है ?” मुख्यमंत्री जी ने उसे ऊपर से नीचे तक देखते हुए कहा।
“सर, आपकी एक दृढ़ इच्छा-शक्ति हमारे राज्य को हानिकारक प्लास्टिक से मुक्ति दिला सकती है।” किसान ने कहा।
“सो कैसे ? ज़रा खुलकर बताओ।” इस बार मुख्यमंत्री के सेक्रेटरी ने पूछा।
“सर, जब प्रधानमंत्री जी की दृढ़ इच्छा-शक्ति से एक निर्धारित अवधि में नोटबंदी हो सकती है, तो हमारे राज्य में प्लास्टिक बंदी क्यों नहीं हो सकती ? यदि आप चाहें तो अधिसूचना जारी कर एक निश्चित अवधि के बाद इसके उपयोग को पूर्णतः अवैधानिक घोषित कर दीजिये। उसके पहले मार्केट में फैले हानिकारक प्लास्टिक को पंचायत और सहकारी उचित मूल्य की दुकानों के माध्यम से वापस लेकर उसके बदले चावल, गेहूं, चना या तेल आदि दे सकते हैं। निर्धारित अवधि के बाद इनका प्रयोग करने वालों को शासन की ओर से मिलने वाली सभी प्रकार सुविधाएँ, सब्सिडी आदि रोकने और जेल की सजा का प्रावधान किया जा सकता है। मुझे विश्वास है कि ऐसा किए जाने पर हमारे राज्य में हानिकारक प्लास्टिक का उपयोग बंद हो जाएगा।” किसान ने एक साँस में अपनी पूरी बात रख दी।
बात ख़त्म होने से पहले ही मुख्यमंत्री जी खड़े होकर किसान से गले लग गए।
शाम तक उक्ताशय की अधिसूचना जारी हो गयी थी।
-डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा