मानवता
”बेटा अपनी गाड़ी साइड में कर लो. पीछे एम्बुलेंस सायरन बजाते हुए आ रही है.” साइड में बैठे रमेश जी ने कार चला रहे अपने बेटे से कहा.
“क्या पापा, आप भी इन फालतू बातों पर विश्वास करते हैं. ऐसे एम्बुलेंस में अक्सर पेशेंट की बजाय हॉस्पिटल के स्टाफ वाले घूमते-फिरते हैं और बेवकूफ टाइप के लोग उन्हें साइड देते रहते हैं.” बेटे ने अपने ही स्टाइल में जवाब दिया.
“बेटा, अपवाद हर जगह होते हैं. अपवादों को ही आदर्श स्थिति मान लेना और उसके अनुरूप आचरण करना तो ठीक नहीं है न. जब भी तुम्हें एम्बुलेंस के सायरन की आवाज सुनाई दे, एक संवेदनशील नागरिक की तरह ये समझ लेना कि उसमें तुम्हारे अपने किसी करीबी रिश्तेदार पेशेंट को हॉस्पिटल पहुंचाया जा रहा है, तो तुम्हारी गाड़ी अपने आप साइड में लग जाएगी. इससे किसी की जान बचाने का रास्ता खुल सकता है बेटा।” रमेश जी ने समझाया.
“पापा, आप एकदम सही कह रहे हैं. आपने तो मेरी आँख ही खोल दी है.” अब तक वह गाड़ी साइड में कर चुका था.
रमेश जी ने देखा एम्बुलेंस सायरन बजाते हुए बहुत आगे बढ़ चुकी है.
— डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा