ग़ज़ल
गरीबों नातवानों को उठाना आ गया जिसको।
लुटाना इस ज़माने पर ख़ज़ाना आ गया जिसको।
कभी तारीक राहों का मुसाफिर फिर बनेगा क्यूँ,
अँधेरी रात में भी जगमगाना आ गया जिसको।
उसे ग़मगीन करना है किसी के वास्ते मुश्किल,
ग़मों के बीच रहकर मुस्कुराना आ गया जिसको।
यक़ीनन ही मिलेगी जीत उसको कुल ज़माने पर,
दिलों की नफ़रतें जड़ से हटाना आ गया जिसको।
क़दम रुकने नहीं उसके बनेगा वो सफल शायर,
ग़ज़ल अच्छी तरह से गुनगुनाना आ गया जिसको।
हवायें तुन्द कितनी हों बुझा सकती न वो दीपक,
समझ गहरा उजालों का फसाना आ गया जिसको।
न हारेगी कभी भी टीम उसकी जंग का मैदां,
समर मे दांव अच्छे से लगाना आ गया जिसको।
— हमीद कानपुरी