किस काम की ये बहारें
किस काम की ये बहारें जब सकून दिल में नही है
झुकी झुकी परेशान है ज़िन्दगी कोईआराम दिल को नही है
भोझ गुनाहों का लिये फिरते हैं अपने काँधों पर ज़िन्दगी में
उमर कट रही है काँटों की सेज पर चैन हमारे दिल को नही है
बडी मुश्किल में है ज़िन्दगी हमारी रास्ता कोई नज़र आता नही है
तलाश में हैं हम अपने आप की वजूद अपने पर भरोसा नही है
हर शख़्स मुब्तला है अपनी उलझनों में मसला कोई मिलता नही है
दवा जिस की मिलती नही दर्द अैसा दिल को मिला है
शुमार ही नही है हमारा ज़िन्दा लोगों में इस दुनिया में
सोचता ही नही दिमाग़ हमारा ख़्वाब कोई नज़र आता नही है
सो रहे हैं हम तो आज कल ग़ाफ़िल हो कर इस ज़माने में
मुक़ाम अपना कैसे पैदा करें हम जब उठ सकते हम नही हैं
लौट कर आएंंगे नही कभी भी मदन वोह दिन हमारी जवानी के
गीत बहारों के सुनते नही गुम शुदा ज़िन्दगी में हम हो गए हें