कविता

चलो चांद की ओर

ये क्या कर रहे हो यारअभी अभी तो चंद्रयान पहुँचा ही हैऔर आपके मुंह में भी पानी आने लगा,कम से कम कुछ सभ्यता सीखो, मानवता दिखाओ।अभी थोड़ा इंतजार तो करोअपने सब्र का जिगरा तो दिखाओ।अभी चंद्रयान को ही मामा की आवभगत काभरपूर आनंद तो लेने तो,मामा के बात व्यवहार औकात काकुछ पता तो लगने दो,इतना न हड़बड़ाओ,नग्नता पर न उतर आओअपनी धरती मां का अपमान तो न कराओइतना भुक्खड़ हो ये चंदा मामा से छिपाओशरीफ भांजे बनकर तो दिखाओ।क्या पता मामा का रहन सहन घर बार कैसा है?इतना पता तो लगने दोचंद्रयान की चिट्ठी तार, स्क्रीन शॉट तो आने दोमामा को भी इतना तो मौका दोकि वे हमारे खाने पीने रहने का इंतजाम तो कर सकें।ऐसी भी जल्दबाजी न करो किहमें बेशर्म मानकर रुठ जायेंखाने पीने के नाम सिर्फ सतुआ पिलाएंखुले आसमान के नीचे सुलाएं।चलो न चाँद की ओरहम कहाँ मना करते हैं,पर आप हमारे साथ भला कैसे जा पाओगे?हमारा तो कन्फर्म टिकट हैआप वेटिंग टिकट से हमें कंपनी कैसे दे पाओगे?पहले अपना टिकट तो कन्फर्म कराओफिर चलो चांद की ओर का अभियान चलाओया सबको बेवकूफ बनाओचांद का यात्रा के नाम पर लूटो खाओमगर उससे पहले थोड़ा धैर्यवान तो बन जाओमेरे दादा काका चाचा ताऊमैं हाथ जोड़कर,पैर पकड़ करआप सबसे निवेदन कर रहा हूँकम से कम इतनी जल्दी नाक तो न कटाओ।

*सुधीर श्रीवास्तव

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