कविता

गौमाता का उपहास

आइए! बड़ा प्रश्न उठाते हैंजब हम सब जानते हैंगाय को सिर्फ जानवर नहींमाता भी कहते और मानते हैं।तब हम खुद से ये क्यों नहीं पूछतेकि हम गौमाता का सम्मान क्यों नहीं करते?पूजा पाठ में उनके गोबर की तलाश करते उनके मूत्र का औषधीय उपयोग करते उनकी महत्ता को महसूस करतेउनका धार्मिक महत्व भी समझतेतब ये प्रश्न क्यों फिजा में तैर रहा हैकि हम गौमाता का सम्मान क्यों नहीं करते?हम सब जानते हैं कि गौमाता में तैंतीस करोड़देवी देवताओं का वास है,गौमाता हमारे लिए पूज्यनीय हैं तब हम ज्ञानी होकर अज्ञानी क्यों बन रहे हैं?हम ही उन्हें उपेक्षित क्यों कर रहे हैं?मरने के लिए उन्हें सड़कों पर आखिर बेसहारा क्यों छोड़ रहे हैं?गौहत्या और गौमांस भक्षण पर आखिर प्रतिबंध क्यों नहीं लगा पा रहे हैं?हम सब मिलकर भी इतना असहाय क्यों हैंजाति धर्म की चक्की में पिसने क्यों दे रहे हैं?सीधी सी बात है हम अपनी जिम्मेदारी से भाग रहे हैंगौमाता को माता कहकरसिर्फ उनका उपहास कर रहे हैंसच तो यह है कि हम सबमानवता को शर्मसार कर रहे हैंफिर भी घमंड कर रहे हैं।

*सुधीर श्रीवास्तव

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