कविता

रक्षा का बंधन

राखी का त्योहार आ गया,बहनों में उल्लास छा गया।राखी के पावन पर्व परबांधती हैं सब बहनें अपनेभाइयों की कलाई पर रक्षासूत्रऔर लेती हैं वचन अपनी रक्षा काराखी के धागों में समेट अपना ढेर सारा स्नेह, लाड़ प्यार दुलारसजाती भाई के माथे पर रोली कुमकुमऔर छिड़कती हैं उसके सिर पर हल्दी अक्षतउतारती हैं आरती, करती हैं दुआएं उसके अच्छे स्वास्थ्य, सुख , समृद्धि कीऔर चाहती हैं उसका प्यार दुलार आशीर्वादसाथ ही जीवन भर उससे मायके का अधिकार।धन्य हो जाते हैं तब भाई भीसजाती है उसकी कलाई परजब उसकी बहनें राखीन चाहकर भी मन भावुक हो जाता है,बहन छोटी हो या हो बड़ी भाई उसके कदमों में झुक ही जाता है,बहन का हाथ स्वमेव आशीर्वाद के लिएभाई के सिर पर चला ही जाता है,तब भाई सचमुच धन्य हो जाता है।हर बहन भाई को रक्षाबंधन पर्व काबेसब्री से सदा इंतजार रहता है,रिश्ते खून के हों या भावनाओं केभला क्या फर्क पड़ता है?राखी के धागों में समाया होता हैअपने भाई पर दुनिया में सबसे ज्यादा,बहन का विश्वास भरा अधिकार,और भाई को होता है अहसासबहन के प्रति अपनी जिम्मेदारी और उसके आजीवन सुरक्षा के कर्तव्य का।ये रिश्ता सचमुच ही अनमोल होता हैखट्टे-मीठे अनुभवों, नोक-झोंक अक्सर होने वाले तू तू मैं मैं के बाद भीहर भाई बहन के लिएसबसे खास, सबसे पास होता है।सबसे ज्यादा लाड़ प्यार दुलार आशीर्वाद औरखुद से भी ज्यादा एक दूजे पर विश्वास होता है,समूची दुनिया में भाई के लिए उसकी बहन औरबहन के लिए उसके भाई से ज्यादान कोई भी और खास होता है।रक्षाबंधन पर्व हर वर्ष इनके लिए सबसे खास त्योहार होता हैक्योंकि ये दोनों को मिलने के बहाने जो देता है,बीते दिनों की यादों को तरोताजा करने और शिकवा शिकायतों संगसुख दुख साझा करने का खूबसूरत मौका भी देता है।रक्षा-बंधन शायद उनके रिश्तों को मजबूत करने के लिए ही आता है।

*सुधीर श्रीवास्तव

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