अनोखा रिश्ता
सोनी और मुकुर बचपन से ही साथ पढ़े -लिखे और सौभाग्यवश 12वीं के बाद भी में एक ही इंस्टिट्यूट में दोनों आ गये। जिससे दोनों में एक रिश्ता सा पनपने लगा । अब मुकुर एक तरफ जहां अपनी सारी बातें सोनी को बताने लगा वही सोनी भी कुछ न छिपाती, जिससे दोनों अपना अधिकांश समय साथ बिताते। अब इंस्टिट्यूट के छात्राओं के अलावा बाहर के अन्य लोग भी उन्हें देख तरह – तरह की बातें बनाते ।यहां तक की जाति की बातें सुनने को मिलने लगा।
सोनी रात्रि के अंधेरे में अपने आप से बातें करते हुए –क्या इस रिश्ते को बढ़ाना सही रहेगा।? क्या माता-पिता इस रिश्ते को कभी स्वीकार करेगे ।सवालों के भवर में फसी, प्रातःकाल हो गया।
आज रक्षाबंधन का दिन था। उसने मुकर को अपने पास बुलाया।जब तक वह कुछ कह पाता, सोनी ने अपने कलेजे पर पत्थर रखकर उसकी कलाई पर राखी बांध दिया और आंखों में दर्द छुपाए वह वहां से चली गई।
सवालों के बीच फंसा मुकुल वहीं बैठा रह गया। अगले दिन सोनू को अकेले देख वह पूछ बैठा– सोनी तुमने ऐसा क्यों किया?
…… क्या किया मैंने ?
……. जान कर अनजान बनने की कोशिश मत करो ! तुम जानती हो तुमने क्या किया ? तुम भली- भाति जानती थी कि हमारे बीच क्या रिश्ता था तो तुमने ऐसा क्यों किया?
………. मुकर अपने रिश्ते को बचाने के लिए,
……… वाह, क्या बात है, रिश्ते बचाने के लिए..
……… हां मुकुर, तुम मुझे गलत समझ रहे हैं ,यदि मैं ऐसा ना करती हूं तो हमारा मिलना, बात करना ,यहां तक की साथ घुमना -फिरना भी मुश्किल हो जाता।
मेरा पढ़ने- लिखने पर भी सवाल आ जाता और यहां छात्रावास में तो जो होता, होता ही…… और हां ,क्या तुम्हारे घर वाले हमारे रिश्ते को स्वीकार कर लेते! बोलो..
……. पता नहीं
मुकुर आज हम जिस रिश्ते में हैं,कम से कम हम पर कोई उंगली तो नहीं उठाएगा,और इस रिश्ते में हम जीवन के हर मोड़ पर एक- दूसरे के साथ रह पाएंगे।
……..पर कैसे यार तुम ?
तुमने इतना बड़ा फैसला अकेले ही ले लिया।
…….उपाय नहीं था दोस्त,मैं भी तुमसे दूर नहीं होना चाहती थी , यही रास्ता मुझे सही दिखा। हां ,इस रिश्ते में भी एक काम को छोड़कर बाकी हर काम होता है ।
……….तुम ना
…. इतने में दोनों जोर से हंस पड़े।
— डोली शाह