कविता

बेटी या बेटा हूं बच्चे अनजान रहते हैं

बच्चे न कोई शिकायत गिले-शिकवे करते हैं 

वह बेटी या बेटा हूं अनजान रहते हैं 

ना किसी की बुराई ना गुणगान करते हैं 

क्योंकि बच्चों में ईश्वर अल्लाह बसते हैं 

घर की चौखट चहकती है बच्चे जब हंसते हैं 

महकता है घर जिसमें बच्चे बसते हैं 

संस्कारवान बच्चे धन सम्मान सेवा के रस्ते हैं 

बच्चों में ईश्वर अल्लाह बसते हैं 

हर छल कपट दांवपेंच से दूर रहते 

अबोध बच्चे खिलखिलाकर हंसते हैं 

किसी के ऊपर ताने तंग नहीं कस्ते हैं 

क्योंकि बच्चों में ईश्वर अल्लाह बसते हैं 

नारी को मां बनने का सम्मान देते हैं 

पिता के गौरव और अभिमान होते हैं 

मत मारो कोख में वह एक नन्हीं सी जान है 

बच्चे में समाए होते ईश्वर अल्लाह हैं 

गम खुशी नहीं समझते हमेशा हंसते हैं 

दिल जुबां में कुछ नहीं बस हंसते हैं 

स्कूल जाते पीठ पर भारी बसते हैं 

तकलीफ नहीं बताते बस हंस्तें हैं 

— किशन सनमुख़दास भावनानी 

*किशन भावनानी

कर विशेषज्ञ एड., गोंदिया