कोरोना और मां की ममता
व्यंग्य
कोरोना और माँ की ममता
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बचपन से लेकर आज अर्थात् दो बच्चों के पिता बनने तक माँ मुख्य रूप से मुझे दो ही बातों पर टोका-टाकी करती थीं। पहली खाने-पीने को लेकर और दूसरी पढ़ाई-लिखाई को लेकर। लेकिन जैसा कि अक्सर होता है कि हम अपनी माँ की बातों को उतना सीरीयसली नहीं लेते, जितना पिताजी की बात को लेते हैं। कारण भी है पिताजी जहाँ हम पर हाथ-पैर ही नहीं, सोंटा भी छोड़ देते थे, वहीं माँ थोड़ा-सा कान खींचने के आगे कुछ नहीं करतीं, बल्कि वे ही तो हमें पिताजी की सुँटाई के समय ढाल बनकर बचाती भी हैं। ऐसे ही सुखद माहौल में हम भी पले-बढ़े और मजबूत हुए हैं।
मुझे याद नहीं मम्मी ने मेरी पढ़ाई-लिखाई की प्रगति को लेकर कभी तारीफ की हो। अब इस उम्र में मुझे उम्मीद भी नहीं थी कि वे तारीफ भी करेंगी। आज जबकि कोरोना महामारी के चलते लागू लॉकडाऊन में हम सभी अपने अपने घरों में मुँह छुपकर (मास्क लगाकर) बैठे हैं, तो टीवी और मोबाइल से ऊबकर किताबें भी पढ़ ले रहे हैं। ऐसे ही आज मैं किताबें पढ़ रहा था।
पता नहीं माँ कब से दरवाजे पर खड़ी मुझे बड़े प्यार से एकटक निहार रही थीं। अचानक उन पर मेरी नजर पड़ी। देखा, माँ की आँखें नम हैं। मैं चिंतित हो उनसे पूछा, “माँ, आपकी आँखों में आँसू ? क्या हुआ ? आप ठीक तो हैं ?”
माँ बोलीं, “मैं ठीक हूँ बेटा। मुझे कुछ नहीं हुआ।”
मैंने आशंकित हो पूछा, “फिर आपकी आँखों में ये आँसू क्यों ?”
माँ बोलीं, “बेटा, पुरानी बातें याद आ गईं। तुम सही थे बेटे। हम ही पागल थे, जो बार-बार पढ़ने के लिए बोलकर तुम्हारा जीना मुश्किल कर दिए थे।”
मैं अवाक रह गया। बोला, “नहीं माँ, आप ऐसा क्यों कह रही हैं। आप और पापा एकदम सही थे। मैं ही गलत था। आप लोगों की बात नहीं मानता था, वरना आज मैं कहीं बेहतर स्थिति में होता।”
माँ स्नेह से मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए बोलीं, “इसीलिए तो कह रही हूँ बेटा कि हम गलत थे। यदि तुम बहुत अच्छा पढ़-लिख लिए होते तो आज अमेरिका, ब्रिटेन, इटली, फ्रांस, कनाडा जैसे देश में फँसे होते और हम यहाँ आँसू बहा रहे होते।”
माँ की बात सुन मैं निरुत्तर हो गया था।
- डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़