शुद्ध गीता छंद आधारित गीत
चाॅंदनी फैली हुई है, श्यामला रजनी प्रसार।
कर रही है तारिका ज्यों,रात में नौका विहार।
टिमटिमाते जुगनुओ की,रंग भू वह खेत मान।
बल्लरी पर श्वेत बेला,चन्द्रिका का है प्रमान ।
मोतियों के झालरें बन,झूलता वह बेल पात,
गंधमय शुभ मालती भी,गूंथती नव पुष्प हार।
श्याम घन पट पर जड़े हैं, ज्यों सितारे रोप्य माल।
हो चमक लोहित मनोहर,भव्य मोहक सा प्रवाल।
ताजगी भरती सुहानी, रातरानी मंद मंद,
हर निमिष में प्रेम की वह,गंध घोले विभु बयार।
श्रावणी वह मास मोहक, प्रेम का करता विकास।
दिव्य सी वह प्रीत माला, झूमती बन चंद्र हास।
गा रही यौवन भरी सी,नद्य धारा नव प्रवाह,
है ललित सौन्दर्य सादा,दे रही वसुधा दुलार।
जब रजत की बांध पायल, नाचती लहरें कमाल।
व्योम से चांदी बरसता,बन गया थल दिव्य थाल
मोहती मन को धवलता, जोत्सना मृदुला प्रसून,
कर रही आकाश तक वो, रागिनी अद्भुत प्रचार ।
— कामिनी मिश्रा अनिका