कविता

ख्वाब तुम्हारे मेरी आंखों में

तुम्हारे ख्वाब मेरी आंखों में फलफूल रहे हैं,न चाहते हुए भी कुलांचे भर रहे हैं।तुम्हारे लिए मेरा तो कोई ख्वाब नहींमुझे तुम्हारी याद भी रत्ती भर नहीं आतीऔर न तुम्हें पाने या खोने की चिंता है मुझेखुली आंखों से सपने देखने की आदत भी तो नहीं है मुझे।मैं तो तुम्हारे ख्वाब अपनी आंखों में सजाता हूँ।तुम्हारे हर ख्वाब धरातल पर उतर आयेंबस! यही तो मैं चाहता हूँतुम्हारी खुशियाँ मेरा सपना हैतुम्हारे हर ख्वाब साकार होते देखना चाहता हूँबस! इसीलिए तुम्हारे ख्वाबअपनी आंखों में मैं सजाता हूँ।

*सुधीर श्रीवास्तव

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