कविता

लक्ष्य को प्राप्त करने मैं चली

सूरज को पकड़ने चली 

हर मुश्किलों को पार करके , 

आज उन्मुक्त गगन में उड़ने  मैं चली |

सबकी मुझसे अनंत इच्छाएंँ हैं , 

एकाग्र चित्त होकर , 

सबके सपनों को साकार करने मैं चली |

सागर में ऊंँची लहरें उठती –  गिरती हैं

गिरने के डर से कभी  मैं रुकती नहीं , 

लक्ष्य को प्राप्त करने मैं चली |

मांँ कहती है  दुलार से तुम मेरी शुचिता ! हो , 

तुममें आंतरिक शक्ति  विराजमान है , 

मांँ का आशीर्वाद लेकर आज घर से मैं निकली हूंँ, 

आईआईटी की तैयारी करने मैं चली |

हॉस्टल के एक छोटे से कमरे में  रहती हूंँ , 

याद अपनों की आती है रो लेती हूंँ , 

उसी क्षण पिता की मेहनत आंँखों के  सामने आ जाती है, 

जिन्होंने एक – एक  रुपया जोड़कर , शिक्षण शुल्क को इकट्ठा किया, 

महंँगी शिक्षा  को  ग्रहण करने मैं चली |

अर्थ के अभाव में प्रतिभा दब –  सी जाती है, 

चुनौतियों का सामना करने मैं चली |

मोह त्याग कर  मुझे अध्ययन करना है  , 

मांँ का दिया अलसी का लड्डू व मठरी जब मैं  खाने के लिए  निकालती हूंँ , 

मुझे जिंदगी मीठी  – नमकीन  – सी लगती है, 

जितना मैं मेहनत करूंँगी फल उतना ही मीठा होगा! 

खट्टे  – मीठे अनुभवों का  स्वाद लेने मैं चली |

मांँ ! मेरी  खाने — पीने की   फ़िक़्र मत करना , 

दिन  – रात  सेहत का ध्यान रखती हूंँ, 

भौतिक का चूर्ण  खाती हूंँ , रसायन का रस पीती हूंँ, 

मनोरंजन का भी ध्यान रखती हूंँ , 

गणित को नचा नचा कर  हंँस लेती हूंँ , 

मैं यहांँ बहुत अच्छी हूंँ ! 

‘ स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का विकास होता है ‘

 कथन अरस्तु का है  अनुकरण करने  मैं चली |

मैं  यहांँ  क़िस्मत को बदलने आयीं हूंँ , 

विश्व में भारत मांँ का  परचम लहराने आयीं हूंँ, 

स्वर्णिम इतिहास लिखने मैं चली |

— चेतना प्रकाश चितेरी 

चेतना सिंह 'चितेरी'

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