लक्ष्य को प्राप्त करने मैं चली
सूरज को पकड़ने चली
हर मुश्किलों को पार करके ,
आज उन्मुक्त गगन में उड़ने मैं चली |
सबकी मुझसे अनंत इच्छाएंँ हैं ,
एकाग्र चित्त होकर ,
सबके सपनों को साकार करने मैं चली |
सागर में ऊंँची लहरें उठती – गिरती हैं
गिरने के डर से कभी मैं रुकती नहीं ,
लक्ष्य को प्राप्त करने मैं चली |
मांँ कहती है दुलार से तुम मेरी शुचिता ! हो ,
तुममें आंतरिक शक्ति विराजमान है ,
मांँ का आशीर्वाद लेकर आज घर से मैं निकली हूंँ,
आईआईटी की तैयारी करने मैं चली |
हॉस्टल के एक छोटे से कमरे में रहती हूंँ ,
याद अपनों की आती है रो लेती हूंँ ,
उसी क्षण पिता की मेहनत आंँखों के सामने आ जाती है,
जिन्होंने एक – एक रुपया जोड़कर , शिक्षण शुल्क को इकट्ठा किया,
महंँगी शिक्षा को ग्रहण करने मैं चली |
अर्थ के अभाव में प्रतिभा दब – सी जाती है,
चुनौतियों का सामना करने मैं चली |
मोह त्याग कर मुझे अध्ययन करना है ,
मांँ का दिया अलसी का लड्डू व मठरी जब मैं खाने के लिए निकालती हूंँ ,
मुझे जिंदगी मीठी – नमकीन – सी लगती है,
जितना मैं मेहनत करूंँगी फल उतना ही मीठा होगा!
खट्टे – मीठे अनुभवों का स्वाद लेने मैं चली |
मांँ ! मेरी खाने — पीने की फ़िक़्र मत करना ,
दिन – रात सेहत का ध्यान रखती हूंँ,
भौतिक का चूर्ण खाती हूंँ , रसायन का रस पीती हूंँ,
मनोरंजन का भी ध्यान रखती हूंँ ,
गणित को नचा नचा कर हंँस लेती हूंँ ,
मैं यहांँ बहुत अच्छी हूंँ !
‘ स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का विकास होता है ‘
कथन अरस्तु का है अनुकरण करने मैं चली |
मैं यहांँ क़िस्मत को बदलने आयीं हूंँ ,
विश्व में भारत मांँ का परचम लहराने आयीं हूंँ,
स्वर्णिम इतिहास लिखने मैं चली |
— चेतना प्रकाश चितेरी