ग़ज़ल
समझ मेरी मुश्किलों को रज़ा देते तो अच्छा था
मिरे ज़ख़्मों पे मरहम तुम लगा देते तो अच्छा था
बड़े खुद्दार हम तो हैं बता मेरी ख़ता क्या थी
सुना मेरी दग़ाबाज़ी धता देते तो अच्छा था
ख़ता क्या थी बता मेरी बना दूरी तुम्हीं ने ली
( लगा इल्ज़ाम फिर हमको सज़ा देते तो अच्छा था )
बना ली धारणा कैसी गलतफ़हमी ने रोका है
ज़रा दुख जो हुआ तुमको जता देते तो अच्छा था
अलग रहना बड़ा मुश्किल हुये तुम तो जुदा हमसे
सभी ही मौत के सामां जुटा देते तो अच्छा था
दग़ा देकर चले तुम फ़ासले मालूम कब होते
कहाँ जाकर छुपे हो तुम पता देते तो अच्छा था
— रवि रश्मि ‘अनुभूति ‘