चीर हरण जारी है (व्यंग्य)
साधुओं !जश्न मनाओ। देश अपनी सांस्कृतिक विरासत का पालन कर रहा है। पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक चीर हरण जारी है। भारत भूमि पर राम और कृष्ण भले ही अवतार लेना भूल गये हों। लेकिन दुर्योधन-दुश्शासन टोलियों में अवतरित हो रहे हैं। यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः का उद्घोष करनेवाले देश ने इस सदी मे अभूतपूर्व प्रगति की। दरबार में होनेवाले चीरहरण को सड़कों पर ला कर जन सामान्य के लिए सुलभ करवा दिया। लोकतंत्र में सब चीज़े सबको जो मिलना चाहिए। वरना लोकतंत्र की हत्या हो जायेगी।
नारी, इस देश की संस्कृति की रीढ़ है- वह गालियों की रचना के काम आती है। नारी आर्थिक प्रगति का आधार है- बहू के रूप में दहेज विनिमय की मुद्रा बन परिवारों को संपन्न-विपन्न करती है। चिकित्साशास्त्र का अद्भुत आविष्कार है-भ्रूण हत्या में योगदान दे कर डाॅक्टरों का पेट पालती है। मनोरंजन का शाश्वत साधन है- विज्ञापनों में देह प्रदर्शन कर समाज को वस्तुओं का उपयोग करना सिखाती है। वर्तमान राजनीति की अपरिहार्य आवश्यकता है- भले ही जन प्रतिनिधि बनकर संसद-विधानसभा में कम दिखती हों, लेकिन जीवित हथियार के रूप में नेताओं सरकार भंग करने के काम आ रही हैं।
नारी का उपयोगी है। कुछ लोग उसका उपयोग तलाक के लिए करते हैं तो कुछ लोग उसे टुकडों में काटकर अपने अथाह प्रेम का परिचय देते हैं। यदि नारी न होती तो संसार ताजमहल के दर्शन से वंचित रह जाता। नारी न होती तो विद्या, ‘सरस्वती विहीन’ हो जाती। हम ‘लक्ष्मीपति’ नहीं बन पाते। हमारे सारे अस्त्र-शस्त्र और आयुध हम किस ‘सिंहवाहिनी’ के हाथों में थमाते? बेचारे कवियों को तो पेट पालना मुश्किल हो जाता। कविता श्रृंगार-सौंदर्य बिना कुरूप हो जाती। फैशन जगत पर ताले लग जाती। मनचलों की दुनिया वीरान हो जाती। बलात्कारी अपने पुरुषार्थ का सामूहिक प्रदर्शन नहीं कर पाते। और सबसे बड़ी चीज़ चीरहरण नहीं होता तो हमारी संस्कृति की रक्षा कैसे हो पाती? इसलिए साधुओं! जश्न मनाओ-चीर हरण जारी है।
— शरद सुनेरी