ग़ज़ल
अम्बर के बनजारे तेरी चुनरी में।
सूरज चाँद सितारे तेरी चुनरी में।
तेज़ हवा ने काले फनियर ज़ुल्फों के,
उल्टे कर-कर मारे तेरी चुनरी में।
प्यासी आँखों का ईशारा काफी था,
कई जीते कई हारे तेरी चुनरी में।
शायद हुसन की भीख ज़रा सी मिल जाए,
जुगनू जगन बेचारे तेरी चुनरी में।
झुमके, कंगन, हार, अंगूठि, हंसली, नथ,
जन्नत जैसे लारे तेरी चुनरी में।
बारिश भीतर बहते हुए दरियाओं ने,
डूबे पत्थर तारे तेरी चुनरी में।
ना तलवार ना खंजर ना तीर ना भाले,
फिर भी है हत्यारे तेरी चुनरी में।
लाख भुलाऊं फिर भी मुझ से भूलेना,
दिन और रात गुज़ारे तेरी चुनरी में।
दूर पहाडों वाली ऊंची चोटी से,
निर्झर नीर उतारे तेरी चुनरी में।
लांखों मीलों से खुशबु आती है,
खिलते फूल बेचारे तेरी चुनरी में।
कुदरत ने उमंग, तरंग, गुलकंद लेकर,
फिर अट्टहास श्रृंगारे तेरी चुनरी में।
जंगलों के जंगल जल कर सब राख हुए,
तपते सुर्ख शरारे तेरी चुनरी में।
आते जाते राही इस में उलझ गए,
नयन तिरे कजरारे तेरी चुनरी में।
मुल्ला, भाई, पण्डित, काजी आशिक, रिंद,
यह सारे के सारे तेरी चुनरी में।
बालम के प्रतीकों-निम्बों वाले शेयर,
कितने प्यारे-प्यारे तेरी चुनरी में।
— बलविंदर बालम