ऑनलाइन फ्रेंडशिप
अजय दसवीं कक्षा का एक होनहार विद्यार्थी था। यथा नाम तथा गुण। किसी भी क्षेत्र में उससे पार पाना उसके हमउम्र लोगों के लिए आसान काम नहीं था। वह पढ़ाई-लिखाई ही नहीं, विद्यालय में होने वाली विभिन्न प्रकार की खेलकूद प्रतियोगिताओं और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेता था और लगभग सभी में ईनाम भी पाता था। माता-पिता की इकलौती संतान होने से वह सबकी आँखों का तारा था।
पिछले साल कोरोना वायरस के कारण स्कूल की पढ़ाई ऑनलाइन होने के कारण उसके दादा जी ने उसे एक महंगा आई फोन उपहारस्वरूप दिया था। आई फोन पाकर वह बहुत ही खुश था। उसने सोसल मीडिया के बहुत से प्लेटफार्म जैसे फेसबुक, मैसेंजर, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप पर अपने एकाऊंट बना लिए थे और अपना बहुत सारा समय उसी पर बिताया करता था।
अजय के माता-पिता और दादा-दादी उसे बारंबार सचेत करते रहते थे कि वह अपनी पढ़ाई-लिखाई पर ज्यादा ध्यान दे और अनजान लोगों की फ्रैंडशिप से दूर रहे। वे उसे अक्सर आजकल होने वाली ऑनलाइन फ्रॉड की बातें बताकर सतर्क भी करते रहते थे। अजय सबकी बातें सुनता पर अपनी ही मनमानी करता था। ज्यादा लाइक, कॉमेंट्स और शेयर की उम्मीद में उसने जाने-अनजाने हजारों लोगों की फ्रैंड रिक्वेस्ट एक्सेप्ट कर ली थी।
ऐसे ही लोगों के लाइक, कॉमेंट्स पाकर वह बहुत खुश होता था। एक दिन अंजली नाम की किसी लड़की ने उसे फ्रैंड रिक्वैस्ट भेजा। अजय ने खूबसूरत प्रोफाइल फोटो देखकर तुरन्त फ्रैंड रिक्वेस्ट एक्सेप्ट कर लिया। यह बात विनाश काले विपरीत बुद्धि साबित हुई। थोड़ी देर बाद अंजली ने मैसेंजर पर ‘हाय’ का मैसेज भेजा। अजय ने भी रिप्लाई दिया। फिर क्या था… बातचीत का सिलसिला ही चल पड़ा। अक्सर दोनों के बीच मनोरंजक बातचीत होने लगी। कुछ ही दिनों में स्थिति ऐसी हो गई मानों वे एक दूसरे को बचपन से जानते हैं। यदि किसी दिन अंजली का मैसेज या फोन न आए, तो अजय व्याकुल हो उठता था।
एक दिन अंजली ने उसे बताया कि वह नई दिल्ली के एक गर्ल्स हॉस्टल में रहकर पढ़ाई कर रही है। कोरोना महामारी के कारण चल रहे लॉक डाऊन की वजह से वह अपने हॉस्टल में फँस गई है। बैंक बंद होने से उसके पिता जी, जो नागपुर में रहते हैं, वे उसे पैसे नहीं भेज पा रहे हैं। उसे पाँच सौ रुपयों की सख्त जरूरत है। क्या अजय ऑनलाइन मदद कर पाएगा ? पैसे उसके हाथ में आते ही वह अजय को लौटा देगी।
पाँच सौ रुपयों की ही तो बात थी। महज पाँच सौ रुपये के लिए वह इस अदृश्य परंतु रोमांचक संबंध को खत्म नहीं करना चाहता था। इसलिए अजय ने बिना ज्यादा सोच-विचार किए हामी भर दी।
अंजली ने उससे कहा कि वह अपने एकाऊंट की लिंक भेज रही है। उसे एक्सेप्ट कर लेना।
अजय ने तुरंत हामी भर दी।
थोड़ी ही देर में अंजली की ओर से एक लिंक आया। अजय ने जैसे ही उसे क्लिक किया उसके पापा के मोबाइल पर एक मैसेज आया। मैसेज पढ़कर उनके पैरों के तले जमीन खिसक गई। अपने बैंक एकाऊंट से पैंतीस हजार रुपए खर्च करने का मैसेज आया था।
वे दौड़ कर अजय के पास आए। पूछने पर अजय ने डरते हुए तुरंत सारी बातें बता दी। उसके पिताजी ने भी बिना देर किए बैंक के कस्टमर केयर और पुलिस विभाग के साईबर सेल में सूचना दे दी। पुलिस की छानबीन करने के बाद पता चला कि अंजली नाम के एकाऊंट संचालन नाइजीरियाई ठगों द्वारा संचालित एक समूह द्वारा किया जा रहा था, जो भोले-भाले लोगों को बातों में फँसाकर अपने झाँसे में ले लेते हैं और फिर ऑनलाइन ठगी कर धोखाधड़ी करते हैं।
अजय के पिताजी ने तुरंत बैंक और पुलिस को सूचना दे दी। इस कारण सप्ताह भर के भीतर ही उनका पैसा वापस मिल गया।
अजय ने अब कान पकड़ लिया है कि किसी भी अंजान व्यक्ति पर भरोसा नहीं करेगा।
— डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा