सोने के भाव बिके बैंगन
बात बहुत पुरानी है। रतनपुर में दो भाई रहते थे। उनका नाम था- दुर्जन और सुजन। दुर्जन जितना दुष्ट था, सुजन उतना ही नेक और सीधा-सादा किंतु वह बहुत ही गरीब था। दुर्जन सुजन की गरीबी पर खूब हँसता। वह भले ही दूसरों को रुपया-पैसा आदि उधार में दे देता किंतु अपने छोटे भाई सुजन को फूटी-कौड़ी भी नहीं देता था।
एक दिन सुजन की पत्नी ने अपने पति से कहा- ‘‘क्यों जी, हम कब तक इस गाँव में भूखों मरेंगे। यहाँ तो ठीक से मजदूरी भी नहीं मिलती।’’
‘‘तो तुम्हीं बताओ ना कि मैं क्या करूँ।’’ सुजन ने लम्बी साँस खींचते हुए कहा।
‘‘क्यों न हम अपने खेतों की बैगन को पडोसी देश में ले जाकर बेच दें। सुना है वहाँ के लोग बहुत धनी हैं। अच्छे दाम मिल जाएँगे।’’ पत्नी का जवाब था।
बात सुजन को भी जँच गई। दूसरे ही दिन वह बोरियों में बैगन भर कर अपने बैलगाड़ी में लादा और पड़ोसी राज्य की ओर चल पड़ा।
पड़ोसी राज्य के लोगों ने पहले कभी बैगन नहीं खाया था। बैगन खाकर वे बहुत ही प्रसन्न हुए। उन्होंने सब बैगन खरीद लिये और उसके वजन के बराबर सोना-चाँंदी तौल दिया।
सुजन बहुत खुश हुआ। धनवान बनकर वह अपने गांँव लौट आया।
दुर्जन ने जब अपने छोटे भाई सुजन को अमीर होते देखा, तो वह इसका राज जानने के लिए सुजन के पास आया। सुजन ने सब कुछ सही-सही बता दिया।
दुर्जन भी कुछ दिन बाद अपनी गाड़ी में बहुत सारा बैगन लाद कर पड़ोसी राज्य की ओर चल पड़ा। उधर पड़ोसी राज्य के लोग अधिक मात्रा में बैगन खाने से बीमार पड़ने लगे। जब उन्होंने सुजन के हम शक्ल दुर्जन को बैगन लेकर आते देखा तो उसे सुजन समझकर मार-पीटकर अपने देश से भगा दिया।
दुर्जन यह समझ भी नहीं पा रहा था कि आखिर उसका कसूर क्या है ?
–डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा