कविता

हिंदी की व्यथा…. 

अब हो गई है मुद्दत, 

उफ्फ यह जद्दोजहद, 

राष्ट्रभाषा बनाने की 

परिश्रम और यह शिद्धत| 

हूँ  बहुत ही शर्मसार, 

लगता है बंद मैं कारागार,

छुड़वाने की मुझको, 

लगा रहे हैं सब गुहार| 

मेरे लिए अर्जी दे डाली, 

वह भी अंग्रेजी भाषा वाली, 

खुद से ही तुम पूछ जरा 

खुद के भीतर मुझको है ढाली?

विदेशी भाषा का होता अनुवाद 

करते हो तुम सिर्फ वाद-विवाद, 

मुझ को न्याय दिलाने को 

खुद तो करो हिंदी में संवाद| 

अंग्रेजी में साक्षात्कार, 

अंग्रेजी में ही समाचार, 

बदलाव तो खुद में करो, 

करना फिर हम पर उपकार| 

हिंदी है माथे की बिंदी, 

पंक्तियां बस वही चुनिंदी, 

सम्मान मान  इतना ही दे दो 

भारतवर्ष में गूंजे सिर्फ हिंदी| 

हमारा क्यों हो सिर्फ एक दिन? 

हिंदी है जन-जन की भाषा 

हिंदी बोलो सब प्रतिदिन|

— सविता सिंह मीरा 

सविता सिंह 'मीरा'

जन्म तिथि -23 सितंबर शिक्षा- स्नातकोत्तर साहित्यिक गतिविधियां - विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित व्यवसाय - निजी संस्थान में कार्यरत झारखंड जमशेदपुर संपर्क संख्या - 9430776517 ई - मेल - [email protected]